
नहि. आम होवा छतां जेने एवी मान्यता छे के आ लिंग ने आ जातिने लीधे ज हवे
मारी मुक्ति थई जशे–तेने लिंग अने जातिनो आग्रह छे. लिंग अने जाति तो
शरीराश्रित छे तेनो जेने आग्रह ने ममत्व छे तेने देहथी भिन्न चैतन्यजातिनी खबर
निमित्त केवुं होय ते त्यां बताव्युं छे.–परंतु आगमना ते कथनथी कोई अज्ञानी एम माने
के ‘आ लिंग अने आ जातिथी ज हवे मुक्ति थई जशे’ तो तेने आगमनी ओथे जाति
अने लिंगनो ज आग्रह छे, ते पण मुक्ति पामता नथी. आ जाति अने आ लिंगमां ज
लिंगने ज मोक्षनुं कारण कहेवानो शास्त्रनो आशय नथी; छतां तेने ज जेओ मोक्षनुं कारण
माने छे तेओ संसारमां ज रखडे छे. मोक्षनुं कारण तो आत्माना श्रद्धा–ज्ञान–चारित्र ज
छे; जेओ एवा रत्नत्रयने आराधे छे तेओ ज मुक्ति पामे छे.
परमात्मस्वरूपने प्राप्त करवा माटे भोगोथी निवृत्तिनो उपदेश छे, तेने जाण्या वगर
एटले के देहथी भिन्न चिदानंदस्वरूप आत्माने जाण्या वगर, भोगादिने छोडीने पण
अज्ञानी जीव मोहने लीधे ते शरीरमां ज अनुराग करवा लागे छे ने बीजा उपर एटले
के परमात्मस्वरूप उपर द्वेष करे छे.–जेनो त्याग करवानो छे तेनी तो प्रीति करे छे ने
जेनी प्राप्ति करवानी छे तेना पर द्वेष करे छे.–एम हवेनी गाथामां कहे छे:–
प्रीतिं तत्रैव कुर्वन्ति द्वेषमन्यत्र मोहिनः।।९०।।
ईन्द्रियविषयोने छोडीने अतीन्द्रिय आत्मस्वभावमां आववानी तो तेने खबर नथी
एटले एक प्रकारना ईन्द्रियविषयने छोडीने पाछो बीजा प्रकारना ईन्द्रियविषयमां ज ते
वर्ते छे, ने अतीन्द्रियस्वभाव प्रत्ये अरुचिरूप द्वेष करे