Atmadharma magazine - Ank 285
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 31 of 45

background image
: २८ : आत्मधर्म : अषाड : २४९३
अर्थात् दिगंबरवेष अने त्रण उत्तम जाति ए सिवाय बीजो वेष के बीजी जाति होय
नहि. आम होवा छतां जेने एवी मान्यता छे के आ लिंग ने आ जातिने लीधे ज हवे
मारी मुक्ति थई जशे–तेने लिंग अने जातिनो आग्रह छे. लिंग अने जाति तो
शरीराश्रित छे तेनो जेने आग्रह ने ममत्व छे तेने देहथी भिन्न चैतन्यजातिनी खबर
नथी, एटले ते परम पदने पामतो नथी.
मुनिदशामां दिगंबर लिंग ज होय, बीजुं लिंग न ज होय; तथा क्षत्रिय, ब्राह्मण के
वैश्य जाति ज होय, शुद्र जाति न होय–एम आगममां कह्युं छे, ते तो यथार्थ ज छे, यथार्थ
निमित्त केवुं होय ते त्यां बताव्युं छे.–परंतु आगमना ते कथनथी कोई अज्ञानी एम माने
के ‘आ लिंग अने आ जातिथी ज हवे मुक्ति थई जशे’ तो तेने आगमनी ओथे जाति
अने लिंगनो ज आग्रह छे, ते पण मुक्ति पामता नथी. आ जाति अने आ लिंगमां ज
मोक्ष थाय एम कहीने शास्त्रोए तो यथार्थ निमित्त बताव्युं छे, पण कांई ते जाति के
लिंगने ज मोक्षनुं कारण कहेवानो शास्त्रनो आशय नथी; छतां तेने ज जेओ मोक्षनुं कारण
माने छे तेओ संसारमां ज रखडे छे. मोक्षनुं कारण तो आत्माना श्रद्धा–ज्ञान–चारित्र ज
छे; जेओ एवा रत्नत्रयने आराधे छे तेओ ज मुक्ति पामे छे.
।। ८९।।
[वीर सं. २४८२ श्रावण सुद छठ्ठ: समाधिशतक गा. ९०]
शरीरनी जाति के लिंग ते मोक्षनुं कारण नथी–एम समजीने शरीरनुं ममत्व
छोडीने परमपदमां प्रीति जोडवानी छे. जे देहनुं ममत्व छोडवा माटे, अने जे
परमात्मस्वरूपने प्राप्त करवा माटे भोगोथी निवृत्तिनो उपदेश छे, तेने जाण्या वगर
एटले के देहथी भिन्न चिदानंदस्वरूप आत्माने जाण्या वगर, भोगादिने छोडीने पण
अज्ञानी जीव मोहने लीधे ते शरीरमां ज अनुराग करवा लागे छे ने बीजा उपर एटले
के परमात्मस्वरूप उपर द्वेष करे छे.–जेनो त्याग करवानो छे तेनी तो प्रीति करे छे ने
जेनी प्राप्ति करवानी छे तेना पर द्वेष करे छे.–एम हवेनी गाथामां कहे छे:–
यत्त्यागाय निवर्तन्ते भोगेभ्यो यदवाप्तये।
प्रीतिं तत्रैव कुर्वन्ति द्वेषमन्यत्र मोहिनः।।९०।।
अज्ञानी जीव शरीर उपरनुं ममत्व छोडवा माटे जे भोगोने छोडे छे तेमां ज
पाछो अज्ञानथी ते प्रीति करे छे ने परमपद प्रत्ये अप्रीतिरूप द्वेष करे छे.
ईन्द्रियविषयोने छोडीने अतीन्द्रिय आत्मस्वभावमां आववानी तो तेने खबर नथी
एटले एक प्रकारना ईन्द्रियविषयने छोडीने पाछो बीजा प्रकारना ईन्द्रियविषयमां ज ते
वर्ते छे, ने अतीन्द्रियस्वभाव प्रत्ये अरुचिरूप द्वेष करे