Atmadharma magazine - Ank 285
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: ३० : आत्मधर्म : अषाड : २४९३
प्रकाशशक्तिने लीधे आत्मा स्वसंवेदनवडे स्वयं प्रकाशे छे, पोते पोतानी
स्वानुभूतिवडे स्पष्ट प्रकाशे–एवो आत्मानो प्रकाशस्वभाव छे. आवा स्वभावने
प्रकाशित करनारा जे प्रवचनो ४७ आत्मशक्ति उपर पू. गुरुदेवे कर्या ते छपाई
रह्या छे; तेमांथी प्रकाशशक्तिनो थोडोक नमूनो आत्मधर्म अंक २७९ मां आप्यो
हतो. त्यार पछीनो भाग अहीं आपीए छीए. जे ‘स्वानुभव’ माटे मुमुक्षुने उत्तम
प्रेरणा आपे छे.
*
जेम बिल्ली लोटनजडी नामनी वनस्पतिनी आसपास घूम्या करे छे, तेम मोहथी
आत्मा निजवैभवने भूलीने परद्रव्यमां उपयोगने भमाव्या करे छे,–जाणे के आमांथी मने
सुख मळशे! पण अंदर पोते पोताना आत्मवैभवने जोतो नथी–के जेमां परम सुख भर्युं
छे. भाई! अंदर नजर तो कर, तुं तो शाश्वत आनंदनो निधान छो; केवळी प्रभुनी वाणी
पण जेनो महिमा गाय, सुधानो जे अमृतसागर, एवो तुं; अरे! तारा सुखना दरियाने
भूलीने पुण्य–पापना कीचडमां तुं अटकी गयो? रागने ज पोतानुं स्वरूप मानीने एनाथी
तें लाभ मान्यो, पण अनंत गुणस्वरूप तारा निजवैभवने तें न जाण्यो. तारुं निजस्वरूप
अनंतगुणनो रसकंद, जे मनना शुभ विकल्पथीये पार, तेना उपर लक्ष कर तो तेनो कोई
अपूर्व आनंद तने ताराथी अनुभवाशे.
पोते पोताने जाणवामां आत्मा स्वतंत्र छे, तेमां कोई बीजानुं जराय अवलंबन
नथी. स्वयं प्रकाशे ने स्पष्ट प्रकाशे, एटले बीजानुं अवलंबन ल्ये नहि ने अस्पष्टता
रहे नहि–एवा स्वसंवेदनस्वरूप आत्मा छे.
स्पष्ट ज्ञानवडे आत्मा जणाय छे, एटले कोई एकला परोक्ष ज्ञानवडे आत्माने
जाणवा मांगे तो ते जाणवामां आवे नहि, बीजी रीते कहीए तो व्यवहारना अवलंबने
आत्मा जणाय नहि. स्वप्रकाशथी आत्मा प्रकाशमान थाय छे एटले के अनुभवमां आवे छे.
आत्मा पोते पोताने प्रत्यक्ष न थई शके–एम कोई माने तो ते वात साची नथी.
ज्ञानमां एवी ताकात छे के स्वसंवेदनथी आत्माने प्रत्यक्ष करे.