Atmadharma magazine - Ank 285
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 34 of 45

background image
: अषाड : २४९३ आत्मधर्म : ३१ :
प्रश्न:– शुं मति–श्रुतज्ञानमां आत्माने प्रत्यक्ष करवानी ताकात छे?
उत्तर:– हा, स्वसंवेदनवडे आत्माने प्रत्यक्ष करवानी मति–श्रुतज्ञानमां पण
ताकात छे.
आत्माने प्रत्यक्ष करे एवी ताकात रागमां नथी पण ज्ञानमां एवी ताकात छे.
पोताना ज्ञानमां पोतानी वस्तु गुप्त केम रही शके? आत्मानो अनुभव करवा माटे
पहेलां ते तरफ ढळीने तेनो निर्णय करवो जोईए के स्वसंवेदन–प्रत्यक्ष थवानो मारो
स्वभाव छे; रागवडे अनुभवमां आवी शके–एवो मारो स्वभाव नथी. आम द्रढ निर्णय
करतां राग तरफनो झुकाव छूटी जाय ने ज्ञानस्वभाव तरफ झुकाव थाय; आ रीते
वच्चेथी रागना पडदाने तोडीने आत्मा स्वानुभव करे छे. स्वानुभवमां जे आत्मा
आव्यो तेनी शक्तिओनुं एटले के तेना वैभवनुं आ वर्णन छे.
निजस्वरूपना वैभवने अनादिकाळथी जीवे नीहाळ्‌यो न हतो; अशुभ ने शुभ
वच्चे ज गुलांट खाधा करी पण तेनाथी पार त्रीजी वस्तुने कदी वेदी नहि. ते वस्तु अहीं
सन्तो बतावे छे. आत्मानो आनंद पुण्य–पाप वगरनो छे, तेमां राग–द्वेष नथी; आवा
आनंदस्वरूप आत्माने स्वसंवेदनथी ज अनुभवी शकाय छे.
आत्मामां पोतामां जे महा किंमती गुण छे तेनी अज्ञानीने खबर नथी ने परनी
किंमत करे छे. बापु! तारा अनंतगुणना महिमानी शी वात? जेने पोताना आनंदना
अनुभव माटे खोराकनी जरूर नहि, शरीरनी जरूर नहि, हवानी के पाणीनी जरूर नहि,
ने विकल्पनीये जरूर नहि, पोते पोताथी ज पोताने प्रत्यक्ष अनुभवे ने आनंदने पामे–
एवी ताकातवाळो आत्मा छे. अन्न के पाणी, मन के वाणी ए कोईनी जेमां जरूर नहीं
एवुं स्वाधीनसुख आत्मामां छे.
आत्मानी प्रकाश शक्ति स्वसंवेदनमयी छे, तेना बे विशेषण आप्या–एक तो
स्वयं प्रकाशमान, अने बीजुं विशद एटले के स्पष्ट;–आवा स्वसंवेदनवाळी प्रकाशशक्ति
छे. ज्यां सम्यग्दर्शन थयुं त्यां आवी प्रकाशशक्ति निर्मळपणे खीलवा मांडी, एटले के
प्रत्यक्ष अने राग वगरनुं एवुं स्वसंवेदन थयुं. आवा स्वसंवेदन वगर सम्यग्दर्शन थयुं
कहेवाय नहीं.
अरे, संसारमां लक्ष्मी माटे जीवो केटला दगा–प्रपंच ने राग–द्वेष करे छे! तेमां
जीवन गुमावे छे ने पाप बांधे छे. भाई! तारा स्वघरनी चैतन्यलक्ष्मी महान छे, तेनी