Atmadharma magazine - Ank 285
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: ३२ : आत्मधर्म : अषाड : २४९३
संभाळ कर ने! तेमां क््यांय दगा–प्रपंच नथी, राग–द्वेष नथी, कोईनी जरूर नथी, छतां
ते महा आनंदरूप छे बहारनी लक्ष्मी मळे तोपण तेमांथी सुख मळतुं नथी; आ
चैतन्यलक्ष्मी पोते महा आनंदरूप छे, ने स्वयं प्रकाशमान छे. आवो अपार वैभव
तारामां भर्यो छे तेने तो लक्षमां ले. तेमां क््यांय एक विकल्पनोय बोजो नथी.
दुनियाना वैभव करतां आ वैभव जुदी जातनो छे. आत्मा स्वशक्तिना
वैभवथी पूरो छे, एने कोई बहारना साधननी जरूर नथी. रंक हो के राजा, स्वर्गमां के
नरकमां, क््यांय आत्माने पोतानी शांति माटे बहारना आधारनी के बहारना साधननी
जरूर नथी; अन्य पदार्थनी अपेक्षा वगर ज पोते पोतानुं प्रत्यक्ष संवेदन करीने पोतानी
शांतिने अनुभवे छे. ते अनुभवने माटे जेम बहारनुं साधन नथी तेम बहारनी
प्रतिकूळता तेमां नडती पण नथी. आवा अनुभवमां पोते पोताने प्रत्यक्ष करे छे–एवो
आत्मानो स्वभाव छे. स्वानुभवमां परोक्षपणुं रहे एवो स्वभाव नथी. सम्यग्दर्शन
थाय त्यां (चोथा अविरत गुणस्थाने पण) आत्मा स्वसंवेदनमां प्रत्यक्ष थई जाय छे.
वाह! प्रत्यक्षपणानो स्वभाव छे, परोक्षपणुं रहे एवो आत्मानो स्वभाव नथी.
परोक्षपणाने पण जे पोतानो स्वभाव न माने ते रागने पोतानो स्वभाव केम माने?
ने जडने पोतानुं केम माने?–न ज माने; एटले आ शक्तिना निर्णयमां निश्चयनो
आदर ने व्यवहारनो निषेध आवी ज गयो.
भाई, आवा आत्माना अनुभवनो काळ ते तारो सुकाळ छे–स्वकाळ छे,
स्वसमय छे, ने ते ज तारो स्वभाव छे. अरे, आवा अनुभव माटेना प्रयत्नमां ने तेनी
चर्चामां जे समय वीते ते पण सफळ छे. आवो उत्तम अवसर पामीने आ ज करवा
जेवुं छे. भव तो एम एम चाल्यो ज जाय छे, तेमां आ करी लेवा जेवुं छे.
परोक्षपणामां समाई जाय एवो आत्मा नथी, प्रत्यक्षपणामां ज ते आवे तेवो छे.
प्रत्यक्षपणुं कह्युं एटले तेमां कोई आवरण न रह्युं; आवरणवाळो भाव ते आत्मानो
स्वभाव नथी. प्रकाशशक्तिने लीधे आत्मा एवा स्पष्ट स्वसंवेदनवाळो छे के ते
स्वसंवेदनमां गुप्त न रही शके. धर्मीना स्वसंवेदनमां ते स्पष्टपणे प्रकाशमान थाय छे.
एकला परोक्षपणाथी कोई तेने जाणी ल्ये एवो आत्मा नथी.
अनंत शक्तिसम्पन्न भगवान आत्मा कर्मना आवरणथी अवरायो नथी; तेना
स्वभावने कोई आवरण नथी तेमज तेनुं जे स्वसंवेदन प्रगट्युं तेमां पण कोई
आवरण नथी. आवा आत्माने स्वसंवेदनथी प्रतीतमां लेवो–ते सुखनो मार्ग छे. गगन
जेवा