Atmadharma magazine - Ank 285
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: ३४ : आत्मधर्म : अषाड : २४९३
शके नहि. अहा, आवो चैतन्यहीरो महा दुर्लभ छे, क््यारेक कोईक विरलाने ते प्राप्त थाय
छे. आवा चैतन्यहीरानी किंमत समजे तो जगतना पदार्थोनो महिमा छूटी जाय, ने ते
निजतत्त्वना महिमापूर्वक अंतर्मुख थईने स्वानुभव करे, एटले सम्यग्दर्शनादि थाय.
सम्यग्दर्शननी साथे बधा गुणोमां अंशे शुद्धता थाय छे, तेथी ‘सर्वगुणांश ते सम्यक्त्व’
एम श्रीमद् राजचंद्रजीए कह्युं छे.
आत्माना बधा गुणो एकसाथे परिणमी रह्या छे, एटले एक गुणमां शुद्धता
थतां बधा गुणोमां शुद्धतानो अंश शरू थई जाय छे. आत्माना अनंत गुणोनुं
परिणमन एकसाथे छे पण कथनमां ते एकसाथे आवी शकता नथी; कथन क्रमेक्रमे थाय
छे, अने ते कथनमां पण अमुक ज गुणो आवी शके छे, बधा गुणो आवी शकता नथी.
केमके शब्दो मर्यादित छे, ने गुणो अमर्यादित अनंत छे. ३३ सागरोपमना असंख्याता
वर्षो सुधी सर्वार्थसिद्धिना बधा देवो आत्मगुणोनुं कथन करे तोपण अनंतमा भागना
गुणोनुं ज कथन थई शके छे; अनंतगुणोनुं वर्णन शब्दोथी पूरुं थई शके नहीं,
अनुभवमां पूरुं आवे. अनंतशक्तिसंपन्न आत्मा वचननो के विकल्पनो विषय नथी, ए
तो अंतर्मुख ज्ञाननो विषय छे.
शक्ति एटले वस्तुनो स्वभाव, अथवा गुण, अथवा धर्म; एकेक आत्मामां
ज्ञानादि अनंतगुणो छे; गुणोनो पूंज एटले के सर्वगुणोनो एकरस पींडलो ते
आत्मा छे; संख्याथी ने सामर्थ्यथी बंने रीते अमाप शक्तिनो समुद्र आत्मा छे.
विकल्पमां भिन्न भिन्न अनंतशक्तिओ न आवी शके, अभेद अनुभवमां बधी
शक्तिओ एकसाथे आवी जाय. आ ज्ञान, आ सुख, आ प्रभुता, आ प्रकाशशक्ति–
एम भेद पाडीने अनंत शक्तिने जाणवा मांगे तो छद्मस्थ जाणी न शके; केमके एक
शक्तिने विचारमां लेतां असंख्य समय लागे ने अनंत शक्तिने विचारमां लईने
जाणतां अनंतकाळ लागे! पण साधकदशानो काळ अनंत होतो नथी, साधकदशा
असंख्यसमयनी ज होय छे. माटे भेदसन्मुख रहीने अनंतशक्तिनुं ज्ञान थई शकतुं
नथी पण अभेदस्वभावनी सन्मुख थईने ज अनंतशक्तिवाळा आत्मानुं ज्ञान थई
शके छे. केवळी–भगवान अनंत आत्मशक्तिने एकसाथे भिन्न भिन्न स्वरूपे पण
जाणी रह्या छे. छद्मस्थनुं ज्ञान भिन्न पाडीने अनंत शक्तिओने न जाणी शके पण
अभेद–अनुभवमां जे अखंड आत्मा आव्यो तेमां तेनी बधी शक्तिओ भेगी ज छे;
स्वानुभवमां बधो आत्मवैभव