Atmadharma magazine - Ank 285
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: ३६ : आत्मधर्म : अषाड : २४९३
गतांकना प्रश्नोना जवाब
(१) ‘अहो अहो! श्री सद्गुरु’...ए गाथा आत्मसिद्धिमां १२४ मी छे. श्रीमद्
राजचंद्रजीए आ ‘आत्मसिद्धि’ नी १४२ गाथा नडीयादमां १९प२ना आसो वद एकमे मात्र
अढी कलाकमां बनावी छे. श्रीगुरुना उपदेशथी शिष्यने ज्यारे अपूर्व आत्मभान थाय छे त्यारे
घणा भावथी गुरुनो उपकार मानतां ते उपरनी गाथा कहे छे. (अत्यारे श्रीमद् राजचंद्रनी
‘जन्मशताब्दि’ एटले के १०० मुं वर्ष चाले छे. आवती कारतक सुद पूनमे तेमना जन्मने १००
वर्ष पूर्ण थईने १०१ मुं वर्ष बेसशे. तेमनुं जन्मस्थान ववाणीया (मोरबी पासे) छे.
(२) गुरुदेव हमणां जे ‘पुरुषार्थ सिद्धिउपाय’ उपर प्रवचन करे छे ते शास्त्र श्री
अमृतचंद्राचार्यदेवे रच्युं छे. तेमां २२६ गाथाओ द्वारा सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान ने सम्यक्
चारित्रनुं वर्णन छे, ने विशेषपणे देशव्रती श्रावकनां धर्मोनुं वर्णन छे. अमृतचंद्राचार्यदेवे
समयसार, प्रवचनसार ने पंचास्तिकाय शास्त्रोनी घणी सरस संस्कृत टीका लखी छे. आ
उपरांत तेमणे ‘तत्त्वार्थसार’ रच्युं छे ते पण घणुं सरस छे. तमे मोटा थाव त्यारे ए बधा
शास्त्रो जरूर वांचजो.
(३) “महावीर भगवानने केवळज्ञान थया पछी सौथी पहेलुं चंदनासतीए
आहारदान दीधुं”–आ वात खोटी छे. केमके एक तो केवळज्ञान थया पछी कोई पण जीवने
खोराक होतो नथी कारण के अरिहंत भगवानने क्षुधा ज होती नथी; एटले केवळज्ञान थया
पछी तो भगवाने कदी आहार लीधो नथी. अने महावीरभगवान ज्यारे मुनिदशामां हता
त्यारे दीक्षा पछी सौथी पहेलुं आहारदान कुलपुरीनगरीना राजाए कर्युं हतुं, चंदना सतीए
नहीं. चंदनासतीए भगवानने आहारदान कर्युं ते प्रसंग तो त्यारपछी घणा वखत बाद
बन्यो हतो.
(४) तमे रोज भगवाननां दर्शन करो छो? ... (साचो जवाब........हा.)
तमे रात्रे खाव छो? ... (साचो जवाब........ना)
केमके बालविभागनो सभ्य एटले जिनवरनो सन्तान, ते हंमेशा भगवानना दर्शन
करे, ने रात्रे कदी खाय नहीं. (आ चोथा प्रश्नमां दर्शन करवाना जवाबमां लगभग ९प टका
बाळकोए ‘हा’ लखी छे. अने रात्रिभोजनना जवाबमां ९० टका जेटला बाळकोए ‘ना’
लखी छे. आ उपरथी जोके बालविभागना सभ्योनी प्रगतिनो ख्याल आवी शकशे. छतां हजी
आशा राखीए के हवे पछी फरीने