: अषाड : २४९३ आत्मधर्म : ३७ :
ज्यारे आ बे प्रश्नो पूछाय त्यारे पहेला प्रश्ननो जवाब सोए सो टका ‘हा’ आवशे ने बीजा
प्रश्ननो जवाब सोए सो टका ‘ना’ आवशे. (कोई कोई सभ्योए एम लख्युं छे के
अत्यारसुधी रात्रे खाता, पण हवेथी नहीं खाईए.)
कोयडामां पूछेलुं सरस मजानुं तीर्थधाम–ए छे “गीरनार” गीरनार ए सौराष्ट्रनुं
गौरव छे. श्रीकृष्णने ए वहालुं हतुं; श्री नेमिनाथ भगवानना दर्शन करवा तेम ज बीजा
अनेक प्रसंगे तेओ गीरनार गया हता. भगवान श्री नेमिनाथ तीर्थंकरे आ गीरनारना
हजार आंबाना वनमां (सहस्राम्रवनमां) दीक्षा लीधी हती, तेओ केवळज्ञान पण त्यां ज
पाम्या हता, ने मोक्ष पण एनी पांचमी टूंकेथी पाम्या हता; बौंतेर करोड अने सातसो
मुनिवरो आ गीरनार उपरथी मोक्ष पाम्या छे. श्रीकृष्णना पुत्रो–प्रद्युम्नकुमार, शम्बुकुमार,
अनिरुद्धकुमार, पण अहींथी सिद्धपद पाम्या छे. आ तीर्थनी चंद्रगुफामां श्री धरसेनाचार्य,
पुष्पदंत–भूतबली वगेरे मुनिवरो रहेता हता. कुंदकुंद स्वामी पण आ तीर्थनी यात्रा करवा
मोटा संघसहित पधार्या हता. सौराष्ट्रमां सौथी ऊंचुं अने अत्यंत प्रसिद्ध एवुं आ पावन
तीर्थ, तेने शोधतां सौराष्ट्रवासीने वार केम लागे? वादळथी ऊंचा एवा आ गगनचूंबी
तीर्थराज चारे बाजु पचीस पचीस माईल दूरथी दर्शन आपे छे ने भक्तोने आकर्षे छे. तमेय
आ तीर्थ न जोयुं होय तो एकवार जरूर एनी यात्रा करजो. एकवार करशो तो बीजीवार
करवानुं मन थशे! जय गिरनार
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एक फूल
पहाडनी ऊंडी कंदरामां एक सुगंधी फूल खील्युं हतुं.
कोईए पूछयुं–रे फूल! तुं आ एकाकी जंगलमां केम महेकी
रह्युं छे? अहीं नथी तो कोई तने जोईने प्रसन्न थनार, के नथी
कोई तारी सुगंध लेनार!
त्यारे फूल कहे छे–हुं एटला माटे नथी खीलतुं के कोई मने
जुए, के कोई मारी सुगंध लईने वाह! वाह! करे, खीलवुं ने
सुगंधथी महेकवुं ए तो मारो स्वभाव ज छे! केवी निस्पृहता!
आपणुं जीवनपुष्प पण एवुं ज खीले ने सुगंधित बने तो!
(‘अमरभारती’ ना आधारे)
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