: ३८ : आत्मधर्म : अषाड : २४९३
[वांचकोना विचार रजु करतो सौनो प्रिय विभाग]
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प्रश्न:– केवळज्ञान थया पछी ते भगवान तरत केम मोक्षमां जता नथी? (नं. ३२०
जामनगर)
उत्तर:– मोक्ष एटले आत्मानी पूर्ण शुद्धता; केवळज्ञान थया पछी पण ज्यांसुधी
आत्मप्रदेशोमां कंपन वगेरे विभाव रहे छे त्यांसुधी अघातीकर्मो पण रहे छे, ने त्यांसुधी
मोक्षरूप पूर्ण शुद्धता थती नथी; ज्यारे ते परभावो पण छूटीने आत्मा पूर्ण शुद्धतारूपे
परिणमे छे त्यारे अघातीकर्मो पण छूटी जाय छे; आने मोक्षदशा कहे छे.
(अरविंद. जे. जैन. नं. २४६ गोंडल) माताओ ने बहेनोमां धार्मिक शिक्षणना प्रचार
बाबतनी आपनी भावना सारी छे; माताओमां धार्मिक शिक्षण होय तो पुत्रोमां पण तेना
संस्कार रेडाय,–ए वात पण बराबर छे. परंतु भाईश्री, ते संबंधी आयोजन करवुं ते आपणा
बालविभागना कार्यक्षेत्रथी बहारनी वस्तु छे. आपणा बालविभाग द्वारा ते प्रकारनुं जेटलुं बनी
शके तेटलुं धार्मिक संस्कारोनुं सींचन आपणे करी ज रह्या छीए.
प्रश्न:– अभेद आत्मानो विचार लांबो टाईम टकतो नथी, विकल्पनी गडमथल थाय
छे, ते टाळवी कई रीते? (No. 215)
उत्तर:– विकल्पना समये एकला विकल्पने ज न देखो; परंतु ते विकल्प वखते ज
‘ज्ञान’ शुं कार्य करी रह्युं छे–तेने देखो...अने ते ज्ञानने ज पकडीने स्वभाव सुधी ऊंडे ऊंडे
चाल्या जाओ...वच्चे तमने कोई नहीं रोके. विकल्प आवे त्यां तेने पकडीने जीव तेमां अटकी
जाय छे एटले तेनाथी आगळ वधी शकतो नथी. पण जो विकल्पने न पकडतां ते वखतना
ज्ञानने पकडे तो ज्ञानबळे विचारधारा अंर्तस्वरूप तरफ आगळ वधे ने अंते अभेद
आत्मानो अनुभव थाय.
प्रश्न:– जीवनमां पुरुषार्थ करवा जेवी कई वस्तु छे? (किशोर जैन. जसदण No. 890)
उत्तर:– सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रनो प्रयत्न कर्तव्य छे; केमके ‘पुरुषनो अर्थ’ एटले
आत्मानुं प्रयोजन मोक्ष छे, अने ते मोक्षनी सिद्धि सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र वडे थाय छे.
प्रश्न:– आपणा आत्मानो पुरुषार्थ स्वतंत्र छे के केम? केमके आपणे पुरुषार्थथी जे कार्य
करीए छीए ते कार्य थवानुं तो केवळीए जोयुं ज हतुं! (शांतिलाल जैन. No. 770 कलकत्ता)