Atmadharma magazine - Ank 285
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: अषाडः२४९३ आत्मधर्म : १ :
वार्षिक लवाजम
वीर सं. २४९३
त्रण रूपिया अषाड
* वर्ष २४ : अंक ९ *
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चैतन्यने साधवानो
उत्साह
* * *
जेने चैतन्यने साधवानो उत्साह छे तेने
चैतन्यना साधक धर्मात्माने देखतां पण उत्साह अने
उमळको आवे छे: अहा! आ धर्मात्मा चैतन्यने केवा
साधी रह्या छे! एम तेने प्रमोद आवे छे, अने हुं पण
आ रीते चैतन्यने साधुं–एम तेने आराधनानो उत्साह
जागे छे. चैतन्यने साधवामां हेतुभूत एवा संत
गुरुओने पण ते आत्मार्थी जीव सर्व प्रकारनी सेवाथी
रीझवे छे ने संत–गुरुओ तेना उपर प्रसन्न थईने तेने
आत्म–प्राप्ति करावे छे. संत धर्मात्मा जे रीते चैतन्यने
साधवानुं कहे छे ते रीते समजीने पोते सर्व उद्यमथी
चैतन्यने जरूर साधे छे.
“अहा, मने मारा आत्मानी प्राप्ति करावनार
संत मळ्‌या; हवे मारा संसारदुःख टळशे ने मने
मोक्षसुख मळशे”–आवा उल्लास अने विश्वासपूर्वक
उद्यम करीने मोक्षार्थी जीव आत्माने जरूर साधे छे.
(१०० रत्नोना संग्रहमांथी)