उमळको आवे छे: अहा! आ धर्मात्मा चैतन्यने केवा
आ रीते चैतन्यने साधुं–एम तेने आराधनानो उत्साह
जागे छे. चैतन्यने साधवामां हेतुभूत एवा संत
गुरुओने पण ते आत्मार्थी जीव सर्व प्रकारनी सेवाथी
रीझवे छे ने संत–गुरुओ तेना उपर प्रसन्न थईने तेने
आत्म–प्राप्ति करावे छे. संत धर्मात्मा जे रीते चैतन्यने
साधवानुं कहे छे ते रीते समजीने पोते सर्व उद्यमथी
चैतन्यने जरूर साधे छे.
मोक्षसुख मळशे”–आवा उल्लास अने विश्वासपूर्वक
उद्यम करीने मोक्षार्थी जीव आत्माने जरूर साधे छे.