Atmadharma magazine - Ank 286
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: श्रावण : २४९३ आत्मधर्म: ब्रह्मचर्य–अंक (चोथो) : ३ :
दोढ हजार माणसोनी सभामां गुरुदेवनुं भावभीनुं प्रवचन थयुं–जेमं सिद्धो अने
सर्वज्ञभगवंतोना आदररूप अपूर्व मंगलनुं स्वरूप समजाव्युं. त्यार बाद एकसाथे नव
कुमारिका बहेनो ब्रह्मचर्य प्रतिज्ञा लेवा माटे ऊभा थया. एकसाथे नव वीरबाळाओ
आत्महितना पंथे प्रयाण करवा तत्पर बनी–ए द्रश्य वैराग्यप्रेरक हतुं जीवनमां क्यारेक
ज जोवा मळतो वैराग्यनो आवो उत्सव देखीने मुमुक्षुओने आनंद थतो हतो. आ
नवेय बहेनो अनेक वर्षोथी पू. गुरुदेवना अध्यात्मरसझरता उपदेशनो लाभ लईने
सत्समागमे तत्त्वनो अभ्यास करे छे, अने पू. बेनश्री–बेननी वात्सल्यभरी छायामां
ज्ञान–वैराग्यनुं पोषण करे छे. आत्मकल्याणनी भावना प्रबळ थतां तेमने एम थयुं के
आपणु जीवन संतोनी छायामां आत्महित साधवाना प्रयत्नमां ज वीते. आवी उत्तम
भावनापूर्वक पोतानुं सारूंय जीवन तेओए सत्समागमे अर्पण कर्युं ने नानी उंमरमां
आजीवन ब्रह्मचर्यनी प्रतिज्ञा लीधी. आ प्रशंसनीय कार्य बदल बधा बहेनोने
धन्यवाद! आ शुभकार्यमां अनुमति आपवा माटे बधा बहेनोना माता–पिता अने
वडीलोने पण धन्यवाद. आपणा साधर्मी बहेनो आजे जीवनना नुतनपंथे प्रयाण करवा
वैराग्यभावथी जे पगलुं भरी रह्या छे–आत्महितना जे ध्येयपूर्वक मंगलमार्गे प्रस्थान
करी रह्या छे ते जीवनध्येयमां सन्तोनी सेवाना प्रतापे तेओ शीघ्र सफळ थाओ एम
ईच्छीए छीए.
आजे पू. गुरुदेवना महान प्रतापे शासनप्रभावना दिन–प्रतिदिन वधती जाय
छे. जिज्ञासु जीवो जागता जाय छे...ने गुरुदेवना अध्यात्मरसपोषक उपदेशथी प्रभावित
थईने अनेक जीवो ‘संत केरी शीतळ छांयडी’ मां आत्महितनो उद्यम करी रह्या छे.
ब्रह्मचर्य–प्रतिज्ञा प्रसंगे दीक्षामहोत्सव जेवुं उल्लासकारी वातावरण नजरे पडतुं
हतुं. बधा बहेनोना कुटुंबीजनो आ प्रसंगे सोनगढ आव्या हता; ठेर ठेर मंडप बंधाया
हता. प्रवचन पछी प्रतिज्ञा लेवा माटे एकसाथे नव वीरबाळाओ ज्यारे गुरुदेव समक्ष
ऊभी थई त्यारनुं द्रश्य वैराग्यप्रेरक हतुं. ब्रह्मचर्यनी दीक्षा आपतां गुरुदेवे कह्युं के नानी
उंमरमां आ दीकरीओ ब्रह्मचर्य ल्ये छे ते सारूं काम करे छे. तत्त्वना अभ्यासपूर्वक तेओ
आ काम करे छे. अहीं बे बहेनोनो (बेनश्री–बेननो) जोग छे तेने लईने कुल