(ब्रह्मचर्य–प्रतिज्ञा प्रसंगना सरघसनुं द्रश्य: जेमां नव
आराधना प्रत्येनो उत्साह वधारवो.
आराधक जीवो प्रत्ये बहुमानथी प्रवर्तवुं.
–ईत्यादि सर्वप्रकारना उद्यमवडे आत्माने आराधनामां जोडवो.
आराधनाने पामेला जीवोनुं दर्शन अने सत्संग आराधना
Atmadharma magazine - Ank 286
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).
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