: ६ : आत्मधर्म: ब्रह्मचर्य–अंक (चोथो) : श्रावण : २४९३
सिद्धो अने सर्वज्ञोना
आदररूप महा मांगळिक
(श्रावण वद एकम: नव बहेनोनी
ब्रह्मचर्य–प्रतिज्ञा प्रसंगे प्रवचनमांथी)
(समयसार कळश २–३)
सर्वज्ञवीतरागदेवनी अनेकान्तमय वाणी आत्माना स्वरूपने प्रकाशे छे.
अनेकान्तमयी वाणी छे ते सर्वज्ञने अनुसरनारी छे. जेवुं वस्तुस्वरूप सर्वज्ञना ज्ञानमां
आव्युं छे तेवुं ज वाणीमां आव्युं छे. ने वाणीमां एवो स्वभाव छे के, छ द्रव्योमां
उपादेयरूप शुद्धआत्मा छे एवा वाच्यने ते वाणी प्रकाशे छे. सर्वज्ञनुं ज्ञान अने वाणीनो
आवो मेळ, छतां बंनेनुं परिणमन स्वतंत्र छे.
ज्ञानी सन्तोनी वाणी पण सर्वज्ञअनुसार छे, केमके सर्वज्ञदेवे जेवुं स्वरूप जाण्युं
तेवुं ज्ञानीओए जाण्युं छे; वस्तुमां अनंता धर्मो छे ते सर्वज्ञदेवे जाण्या छे ने वाणीमां
कह्या छे. आवो आत्मा ने आवुं ज्ञान तथा आवी वाणी ते मंगळ छे. ने आवा
सर्वज्ञनो जे निर्णय करे तेनुं ज्ञान पण मंगळ छे.–
जो जाणदि अरिहंतं दव्वत्तगुणत्तपज्जयत्तेहिं।
सो जाणदि अप्पाणं मोहो खलु जादि तस्स लयं।।
भगवान कुंदकुंदस्वामी कहे छे के सर्वज्ञना आत्माने जे ओळखे ते नियमथी
पोताना आत्माने ओळखे, ने तेनो मोह नष्ट थईने सम्यग्दर्शन थाय.–ते महा
मांगळिक छे.
‘वंदित्तु सव्वसिद्धे” कहीने आचार्यदेवे समयसारमां महान अप्रतिहत मंगळ
कर्युं छे. अनंता सिद्धभगवंतो जगतमां छे, तेमना अस्तित्वने ज्ञानमां स्वीकार्युं ते
ज्ञाननी ताकात केटली? ते ज्ञान रागथी जुदुं पडीने अंतरस्वभाव तरफ वळ्युं छे. आ
रीते अनंता सिद्धोने पोताना ज्ञानमां