Atmadharma magazine - Ank 286
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: श्रावण : २४९३ आत्मधर्म: ब्रह्मचर्य–अंक (चोथो) : ७ :
जेणे पधराव्या ते अप्रतिहतपणे सिद्धपद तरफ चाल्यो. अहा, आवा लक्षे समयसार
सांभळशे तेने शुद्धात्मानी प्राप्ति जरूर थशे थशे ने थशे.
जेणे सिद्धने अने सर्वज्ञने स्मरणमां लईने तेमनो आदर कर्यो तेने रागनो
आदर रहे नहि. रागमां तेनी परिणति अटके नहीं, ते ज्ञानानंदस्वभाव तरफ झुकीने
तेनो अनुभव करे. आ रीते सिद्धो अने सर्वज्ञना आदररूप मंगळ कर्युं.
वीतरागवाणीनुं रहस्य शुद्ध आत्मा छे, तेने ज्ञानी ज जाणे छे. अज्ञानी
वीतरागवाणीना रहस्यने जाणी शक्तो नथी. अहो, वीतरागवाणीमां जेवो शुद्ध आत्मा
कह्यो तेवो लक्षमां लईने ते वाणीनो पण आदर करीए छीए, ते वाणीने नमस्कार
करीए छीए.
त्रीजा कळशमां आचार्यदेव कहे छे के आ समयसारमां जे शुद्ध जीवनो उपदेश
छे तेना घोलनवडे मारी परिणति शुद्ध थाओ. “समयसारनी व्याख्या” थी एनो
अर्थ ए के तेमां कहेला शुद्धात्माना घोलनथी अंतरमां शुद्धता वधती जाय छे.
टीकाना शब्दोनो कर्ता आत्मा नथी, पण तेना वाच्यरूप जे शुद्धात्मा ते तरफ
वारंवार ज्ञानना झुकावथी परिणति शुद्ध थती जाय छे. अने जे जीवो आवा
शुद्धात्माना लक्षपूर्वक समयसार सांभळशे तेमने पण सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रनी
शुद्धता थशे.
अहा, चैतन्यवस्तु रागथी पार, तेने स्वरूपसाधनवडे ज निर्मळता थाय छे.
विकल्प के वाणी कांई तेनुं खरूं साधन नथी. अहा, जेनी वार्ता सांभळतां पण
मुमुक्षुने आनंद आवे एना अनुभवना आनंदनुं शुं कहेवुं? आवाआत्मानी प्राप्ति
राग वडे न थाय. रागना अभावरूप वैराग्यनो उपदेश छे. आखी दुनियाथी उदास
थईने ज्ञानानंदस्वरूप आत्मानी लगनी कर, तेनो आश्रय कर, तेनो अनुभव कर,–
आवो संतोनो उपदेश छे. अतीन्द्रियआनंदथी भरेलो आत्मा छे तेनुं भान थतां
पर्यायमां ते आनंद अनुभवायो छे. पछी साथे कांईक अशुद्धता रही गई तेने पण
धर्मी जाणे छे. आनंदनो नमुनो चाखीने पूर्णानंदस्वभावनी प्रतीत करी छे.
पर्यायमां आनंदनो अंश प्रगट थया वगर पूर्ण आनंदस्वभावनी साची प्रतीत थाय
नहीं. सम्यग्द्रष्टि–साधकने अंशे शुद्धता अने मलिनता बंने साथे छे. ते जाणे छे के
मारा शुद्धउपादानथी