Atmadharma magazine - Ank 286
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: श्रावण : २४९३ आत्मधर्म ब्रह्मचर्य–अंक (चोथो) : ९ :
आचार्य कुंदकुंदप्रभुनी वाणीमां शुद्धात्मअनुभवनो अजोड टंकार छे.
अंतरमां सिद्धप्रभुने स्थापीने समयसार द्वारा शुद्धात्मअनुभवना जे टंकारा तेमणे
कर्या छे ते टंकार सांभळतां ज मुमुक्षु–वीरो आत्मिकशूरातनथी जागी जाय छे ने
मोह भागी जाय छे. जेमना पहेला ज टंकारे समकित थाय ने बीजा टंकारे
वीतरागता थाय–एवा कुंदकुंदप्रभुनी वाणीना टंकार गुरुदेवना आ प्रवचनमां
देखीने दरेक जिज्ञासु जीव आनंदित थशे ने एना अंतरमांय सिद्धपदना टंकार थशे.







आ समयसारनी शरूआतमां ज कुंदकुंदाचार्यदेवे आत्मामां सिद्धपणुं स्थापीने
मंगळ कर्युं हतुं के ‘हुं सिद्ध ने तुं सिद्ध’ मारामां ने तारामां बंनेमां सिद्धने स्थापुं छुं;
एटले सिद्धपद जेवा निर्मळभावोमां व्यापे एवो आत्मा छे,–एवो आत्मा हुं आ
समयसारमां देखाडीश. तारी ज्ञानपर्यायना आंगणे अनंता सिद्धप्रभुने पधरावुं छुं ने
विकारने काढी नांखुं छुं. अंतर्मुख थयेली ज्ञानपर्यायमां एटली ताकात छे के विकारने
काढी नांखीने अनंता सिद्धप्रभुने पोतामां स्थापे. आ रीतथी अनंत सिद्धोने तारा
ज्ञानमां आमंत्रण आप ने तुं पण तेवो था. विकारने तारा ज्ञानमांथी काढी नांख ने
सिद्धपणुं स्थाप एटले के सिद्ध जेवा स्वभावथी भरेलो तारो आत्मा तेने ज्ञानमां लईने
पर्यायमां तुं तेवो थई जा.
वाह, सिद्धपदना टंकार करीने अपूर्व शरूआत करी छे, के अमारा समयसारनुं
श्रवण करनारा श्रोताओ पण आवा होय; ए रागनी रुचिवाळा