कर्या छे ते टंकार सांभळतां ज मुमुक्षु–वीरो आत्मिकशूरातनथी जागी जाय छे ने
मोह भागी जाय छे. जेमना पहेला ज टंकारे समकित थाय ने बीजा टंकारे
वीतरागता थाय–एवा कुंदकुंदप्रभुनी वाणीना टंकार गुरुदेवना आ प्रवचनमां
देखीने दरेक जिज्ञासु जीव आनंदित थशे ने एना अंतरमांय सिद्धपदना टंकार थशे.
आ समयसारनी शरूआतमां ज कुंदकुंदाचार्यदेवे आत्मामां सिद्धपणुं स्थापीने
एटले सिद्धपद जेवा निर्मळभावोमां व्यापे एवो आत्मा छे,–एवो आत्मा हुं आ
विकारने काढी नांखुं छुं. अंतर्मुख थयेली ज्ञानपर्यायमां एटली ताकात छे के विकारने
काढी नांखीने अनंता सिद्धप्रभुने पोतामां स्थापे. आ रीतथी अनंत सिद्धोने तारा
ज्ञानमां आमंत्रण आप ने तुं पण तेवो था. विकारने तारा ज्ञानमांथी काढी नांख ने
सिद्धपणुं स्थाप एटले के सिद्ध जेवा स्वभावथी भरेलो तारो आत्मा तेने ज्ञानमां लईने
पर्यायमां तुं तेवो थई जा.