Atmadharma magazine - Ank 286
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: श्रावण : २४९३ आत्मधर्म : ब्रह्मचर्य–अंक (चोथो) : ११ :
तने पण अमारा जेवो स्वानुभव थशे. ने वक्ताना तथा श्रोताना भावनी संधि
थशे.
जे आंगणामां प्रभुने पधराववा (–अनुभवमां लेवा) होय ते आंगणुं
केटलुं चोक्खुं जोईए! विकारनी रुचिवडे जेनुं आंगणुं मलिन छे ते मलिन
आंगणामां प्रभु पधारे नहि–अनुभवमां आवे नहि. एक सारो राजा घरे आवे
तोपण तेनो केटलो आदर करे छे ने आंगणुं चोक्खुं करीने केवुं शणगारे छे! तो हे
भाई! जगतना महाराजा एवा सिद्धप्रभुने तारा आत्मामां पधराववा माटे तारी
पर्यायना आंगणाने निर्मळ श्रद्धा–ज्ञानवडे तुं शणगार. हकारना जोरपूर्वक जे
सांभळवा आव्यो तेनी पर्याय रागथी पाछी हठीने अंतर तरफ वळवा लागी,
संसारथी पाछी फरीने सिद्धपद तरफ जवा लागी. अनंता सिद्धने ने सर्वज्ञपदने
मारा ज्ञानमां–श्रद्धामां–अनुभवमां समाडी दउं एवी मारी ताकात छे–एम
स्वभावना भरोसे हा पाडीने ते स्वभावने सांभळे छे; एटले एना श्रवणमां ने
एना भावमां अपूर्वता छे.
जुओ, आ प्रभुता! प्रभु पोताना अनंत गुणोमां व्यापेलो विभु छे. तेनी
विभुतानो आ विस्तार थाय छे. विभुतामां ज्ञान छे. विभुतामां विकल्प नथी.
विकल्पमां के वाणीमां ज्ञान नथी, ज्ञानमां विकल्प के वाणी नथी. ज्ञान सर्वने
जाणवाना सामर्थ्यवाळुं छे ए अपेक्षाए आत्माने सर्वव्यापक भले कहेवाय. पण
खरेखर तो ते स्व–व्यापक छे; रागमां ते व्यापतुं नथी त्यां परमां व्यापवानी तो
वात ज केवी?
स्त्री के बाळक, वृद्ध के युवान, मनुष्य के देव, ए तो बधा उपरना खोखां छे,
एनाथी भिन्न अंदर बधा आत्मा एक जातना छे. बधाय आत्मा पोतपोताना
अनंत गुणना वैभवथी भरेला छे. आत्मा क्यां स्त्री आदि छे? ए तो
चैतन्यगुणनो भंडार छे. अहो, आवुं स्वरूप लक्षमां लेनार ज्ञाननी केटली
गंभीरता? आवी गंभीरतामां अनंत सर्वज्ञ–वीतरागने स्थाप्या छे. भाई! तुं
बीजा विचार न कर...सिद्ध जेवी तारी ताकात छे तेमां शंका न कर. बीजो विकल्प
वच्चे न लाव. भगवान कुंदकुंदस्वामी जेमणे विदेहनी यात्रा करीने सीमंधर
परमात्माना साक्षात् भेटा कर्या. तेओ स्वानुभवना जोरथी परम सत्यने प्रसिद्ध
करतां फरमावे छे के आत्माना