: श्रावण : २४९३ आत्मधर्म: ब्रह्मचर्य–अंक (चोथो) : १३ :
फेलाई जाय एटलो एनो विस्तार छे. पण ए बहार जईने विकारमां फेलातो नथी.
चैतन्यगुणना फेलावमां विकारनो अभाव छे.
अरे, चक्रवर्तीना आंगणे जईने एनी पासे कोलसा न मंगाय, एनी पासे तो
हीरा मंगाय; तेम आ चैतन्यचक्रवर्तीना आंगणे नीकटभव्य थईने आव्यो तो एनी
पासे राग न मंगाय, एनी पासे तो केवळज्ञानादि अनंत गुण–रत्नो मंगाय. अहो,
चैतन्यना वैभवनी शी वात! क्षेत्र भले मध्यम–मर्यादित, पण एना भावनी ताकात
अचिन्त्य ने अमर्यादित छे. एक समयमां अनंतगुणनो जे अपार वैभव प्रगट्यो तेमां
सर्वव्यापक थईने परिणमे छे–एवी आत्मानी विभुता छे. सम्यग्दर्शन थतां आवा
‘विभु’ नो पोतामां साक्षात्कार थाय छे, आत्मभान थाय छे, परमात्मपणुं पोतामां
देखाय छे, साक्षात् परमात्मा थवानी तालावेली जागे छे एटले के परिणतिनो प्रवाह ते
तरफ वहे छे. (–स्वरूप भणी दोडे परिणति.)
सिद्धपदना साधक सन्तोए करेला आ सिद्धपदना टंकार
झीलीने हे जीव! तुं पण सिद्धिपंथनो पथिक था.
दसलक्षणी पर्युषणपर्व भादरवा सुद ४ ने शुक्रवार ता. ८–९–६७
थी शरू करीने भादरवा सुद १४ ने रविवार ता. १७–९–६७ सुधी
उजवाशे. (वच्चे एक तिथि घटती होवाथी पर्युषण एक दिवस वहेला
शरू थाय छे.) आ दरमियान दशलक्षणी धर्मो उपर पू. गुरुदेवना खास
प्रवचनो तेमज दशलक्षणधर्मोनुं पूजन वगेरे कार्यक्रमो थशे.
त्यार पहेलां श्रावण वद १२ थी भादरवा सुद ४ सुधी ता. १ थी
८ सप्टेम्बर सुधीना आठ दिवसो दरमियान दर वर्षनी जेम राबेता
मुजब पू. गुरुदेवना खास प्रवचनो थशे.
उद्घाटन: श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्टना भूतपूर्व प्रमुख मुरब्बी श्री
रामजीभाईना सन्मान निमित्ते एकठा थयेला फंडमांथी शास्त्रभंडार
माटेनो जे होल बांधवामां आवेल छे तेनुं उद्घाटन भादरवा सुद चोथ
(ता. ८–९–६७) ना रोज करवानुं नक्की थयुं छे.
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