ः १४ : आत्मधर्म: ब्रह्मचर्य–अंक (चोथो) : श्रावण : २४९३
तेमनी आत्मिक–आराधनानी पवित्र कथा
भगवत् जिनसेनस्वामी रचित महापुराणना आधारे: ले. ब्र. हरिलाल जैन
(लेखांक–१प : आ कथा आ अंके पूरी थाय छे)
प्रिय पाठक! आपणा कथानायक महात्माए महाबलना भवथी मांडीने भगवान
ऋषभदेव सुधीना दश भवमां जे धर्मसाधना करी अने तीर्थंकर थईने धर्मतीर्थनुं
प्रवर्तन कर्युं तेनुं जे वर्णन भगवत् जिनसेनस्वामीरचित महापुराणना २प प्रकरण
सुधीमां छे, ते आपे टूंकमां अहीं सुधीमां वांच्युं. त्यारपछी २६ मा प्रकरणथी ४७ प्रकरण
सुधी भरतचक्रवर्तीना दिग्विजय वगेरेनुं, तेमज बाहुबली, जयकुमार वगेरे
महापुरुषोना जीवननुं वर्णन छे, अने पछी उत्तर–पुराणमां (प्रकरण ४८ थी ७६ मां)
बाकीना २३ तीर्थंकरभगवंतो, चक्रवर्तीओ, रामचंद्रजी, हनुमानजी वगेरे महापुरुषोनी
जीवनकथा छे. भगवान ऋषभदेवना शासनकाळमां थयेला बीजा भरतादि
महापुरुषोना जीवननुं विस्तृत वर्णन तो ते–ते पुरुषोना जीवनचरित्रमां कोई वार
करीशुं, अहीं तो तेमना मंगलस्मरण–अर्थे टूंको उल्लेख ज करीशुं; ने पछी छेल्ले
कैलासधाम उपर पहोंचीने भगवाननो मोक्षकल्याणक जोईशुं.
भरत चक्रवर्ती अने बाहुबली
भगवान ऋषभदेवना मोटा पुत्र, ने पूर्वे अनेक भव सुधी तेमनी साथे रहेनार
भरत, पुरितमालनगरीमां भगवान ऋषभदेवना समवसरणमां वंदना करीने अयोध्या
आव्या; त्यां पुत्रजन्मनो तथा चक्ररत्ननी उत्पत्तिनो उत्सव कर्यो, ने पछी छ खंडनो
दिग्विजय करवा नीकळ्या. ज्यारे सौराष्ट्रदेशमांथी पसार थया त्यारे वच्चे गीरनारनो
मनोहर प्रदेश आव्यो: अहीं भविष्यमां नेमिनाथ तीर्थंकर थशे–एम स्मरण करीने
भरतचक्रवर्तीए ते भूमिनी वंदना करी. छखंडनो दिग्विजय करीने पाछा फरतां
कैलासपर्वत उपर भगवान आदिनाथना फरी दर्शन कर्या. भरते भगवानना दर्शन
करीने दिग्विजयनी शरूआत करेली. ते आजे ६०००० वर्षबाद दिग्विजयनी
पूर्णताप्रसंगे तेने फरीने ऋषभदेवप्रभुनां दर्शन थया. तेनी साथे १२०० पुत्रो हता,
तेओए पोताना आदिनाथदादाने पहेली ज वार देख्या, ने देखीने परम आश्चर्य
पाम्या! तेओ पोतानी