Atmadharma magazine - Ank 286
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: १६ : आत्मधर्म : ब्रह्मचर्य–अंक (चोथो) : श्रावण : २४९३
नमवानो निरधार कर्यो हतो. भरतराजाना दूतद्वारा सन्देशो सांभळीने ९८
भाईओ तो संसारथी विरक्त थई गया ने ‘दीक्षा ए ज रक्षा छे’ एम समजीने
भगवान आदिनाथ प्रभुना शरणे जईने मुनि थया, ने पछी केवळज्ञान प्रगट करी
मोक्ष पाम्या.
बाकी रह्या एक बाहुबली!
एमणे न तो दीक्षा लीधे के न
भरतने नमन कर्युं. अंते भरत–
बाहुबली वच्चे त्रिविध युद्धमां भरत
हार्या, चक्र छोड्युं, विजेता बाहुबली
संसारथी वैराग्य पामीने दीक्षित थया
ने एक वर्ष सुधी प्रतिमायोग धारण
करीने ध्यानमां लयलीनपणे
अद्भुत–आश्चर्यकारी तप कर्युं. आ
भवना भाई, ने पूर्व भवना पण
भाई–एवा भरतचक्री तेमनुं पूजन
करवा आव्या, ते ज वखते निःशल्य
थईने तेओ केवळज्ञान पाम्या, ने
भरते रत्नोना अर्घवडे अतिभक्तिथी फरीने बाहुबली–केवळीनी मोटी पूजा करी.
केवळज्ञानप्राप्त बाहुबली जिनदेवे अनेक देशोमां विहार करी दिव्यध्वनिवडे सर्वे
जीवोने संतुष्ट कर्या ने पछी कैलासपर्वत उपर आवी पहोंच्या.
भरतचक्रवर्तीए एकवार १६ स्वप्नो देख्या; ते तेनुं फळ जाणवा भगवानना
समवसरणमां गया; भगवानना चरणोमां भक्तिथी प्रणाम करतां ज तेमने
अवधिज्ञान प्रगट्युं ए १६ स्वप्नो आगामी पंचमकाळना सूचक हता.
जयकुमार
भगवानने प्रथम आहारदान देनार हस्तिनापुरना राजा सोमप्रभ अने
श्रेयांसकुमार; श्रेयांसकुमार तो भगवानना ९ भवना साथीदार, ने छेवटे गणधर थया;
सोमप्रभराजाना पुत्र जयकुमार; सोमप्रभराजाए दीक्षा लीधा पछी जयकुमार
हस्तिनापुरना राजा थया, तेमज भरतचक्रवर्तीना तेओ सेनापति पण हता.
सुलोचनादेवी साथे तेनां लग्न थया; बंनेने जातिस्मरण थतां अनेक भवोना संबंधनुं
ज्ञान थयुं हतुं. ईन्द्रे ते बंनेना उत्तम शीलनी प्रशंसा करी तेथी देवीए आवीने तेमना
शीलनी परीक्षा करी. एकदिवस भगवाननो उपदेश सांभळीने जयकुमारे दीक्षा लीधी,
तेनी साथे तेमना नाना भाईओ