जयकुमार ऋषभदेवप्रभुना७१ मा गणधर थया ने मोक्ष पाम्या; सुलोचनाए पण दीक्षा
लीधी, ने एकावतारी थई. (जयकुमारनी दीक्षानुं द्रश्य आ अंकमां टाईटल ३ उपर छे.)
गगनमां बिराजे छे; ४७प० श्रुतकेवळीओ छे; ४१प० शिक्षकमुनिवरो छे; ९०००
अवधिज्ञानी मुनिवरो छे; २०६०० विक्रियाऋद्धिधारक मुनिवरो छे; १२७प०
मनःपर्ययज्ञानी मुनिवरो छे. ए रीते कुल ८४०८४ (चौराशी हजार ने चोराशी)
मुनिवरोनो संघ बिराजे छे,–तेमने नमस्कार हो. ब्राह्मी वगेरे त्रण लाख पचास हजार
अर्जिकामाताओ भगवानना गुणोनी उपासना करी रह्यां छे; द्रढव्रतादि त्रण लाख
श्रावको ने सुव्रतादि पांच लाख श्राविकाओ भगवाननी स्तुति करे छे; देवो अने
तिर्यंचोनो पण कोई पार नथी. आवी उत्तम धर्मसभामां दिव्यध्वनिना धोध छूटी रह्या
छे ने केटलाय जीवो सम्यक्त्वादि धर्म पामीने मोक्षमार्गने साधी रह्या छे.
विचर्या. ज्यारे तेमने मोक्ष जवामां १४ दिवस बाकी रह्या त्यारे पोष सुद पूर्णिमाना
दिवसे कैलासपर्वत उपर भगवाननो योगनिरोध शरू थयो, दिव्यध्वनि बंध थई गई.
वृक्ष मनुष्योनां जन्मरोगने मटाडीने स्वर्गमां जाय छे; गृहपतिए जोयुं के कल्पवृक्ष
ईच्छित फळ आपीने स्वर्गमां जई रह्युं छे; प्रधानमंत्रीए जोयुं के एक रत्नद्वीप लोकोने
रत्नसमूह आपीने आकाशमां जवा तैयार थयेल छे; ए ज रीते सेनापति वगेरेए पण