नजीकमां सांभळेली भगवाननी दिव्यवाणीने याद करी छे. ने पछी ए दिव्यध्वनिना
दरियामांथी एक अमूल्य रत्न शोधीने आपता होय तेम लख्युं छे के–‘निज परमपावन
परमात्मानुं निज परमस्वरूप, तेना प्रवाहनी परम प्रतीति अने तेमां स्थिरता–ए
अमूल्य चिंतामणिरत्न छे, के जेनुं मुल्यांकन होई शके नहीं.’
वर्ती रह्युं छे. आवा पोताना परमात्मतत्त्वनी परम प्रतीति, मात्र सांभळीने
उपरांत तेमां स्थिरता, ए अमूल्य चिंतामणिरत्न छे; आवा अमूल्य चिंतामणिने
हाथमां राखीने आत्मानो जे कांई वैभव चिंतववामां आवे ते तत्क्षणे प्राप्त थाय
छे. सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप जगतना सर्वोत्कृष्ट रत्नो आ चिंतामणिमां समाई
जाय छे, तेमज बीजा अनंतगुणोनी निर्मळतारूप अनंत रत्नो तेमां भेगा आवी
जाय छे.–एमां प्रतीति अने एमां स्थिरता ए सिवाय बीजा कोई प्रकारे एनां
मुल्यांकन थई शके नहीं. गुरुदेवे स्वहस्ते दर्शावेला आवा चैतन्यचिंतामणि रत्नने
शीघ्र पामीए..ए ज भावना. (सं.)