Atmadharma magazine - Ank 286
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 33 of 75

background image
: २४ : आत्मधर्म : ब्रह्मचर्य–अंक (चोथो) : श्रावण : २४९३
पोताना ज स्वसंवेदन वडे आत्माने प्रत्यक्ष करे. आवी दिव्य शक्तिवाळा आत्माने देखे
तो दिव्यद्रष्टि ऊघडी जाय. तारा आत्मानो वैभव तारे देखवो होय तो तारी दिव्य
आंखो खोल. आ बहारनी आंख वडे ए नहीं देखाय, अंदर रागनी आंख वडे पण ते
नहीं देखाय; पण चैतन्यना ज्ञानचक्षु खोल तो तने तारो दिव्यवैभव देखाशे.
चैतन्यदरबारनी शोभा कोई अद्भुत ने आश्चर्यकारी छे.
प्रभो! आ जे कांई कहेवाय छे ते बधुं तारामां ज छे. तारा आत्मवैभवनी आ
वात सन्तो तने संभळावे छे. वाह रे चैतन्यप्रभु, तारी प्रभुता!! एकला ज्ञानप्रकाशनो
पूंज, एकला आनंदनुं धाम! आवी अनंतशक्तिना धामरूप आत्मा छे. ते शक्तिओ
कारणरूप छे, ने ते कारणमांथी कार्य आवे छे. साचा कारणना स्वीकार वडे कार्य आवे
छे. कारणनो ज्यां स्वीकार नथी त्यां कार्य क्यांथी आवशे? ज्यां कारणपणे रागनो ज
स्वीकार छे त्यां कार्यमां पण राग आवशे. रागकारणमांथी वीतरागीकार्य आवशे नहीं.
भगवान आत्मानी अनंती शुद्ध शक्तिओ छे तेनो स्वीकार करतां (एटले के तेनी
सन्मुख थतां) ते केवळज्ञानादि शुद्ध कार्य आपे छे एवी तेनामां ताकात छे. आत्मानुं
शुद्ध कार्य आपवानी ताकात बीजा कोईमां नथी. अनंत कारणशक्तिथी भरेला पोताना
चिदानंद स्वभावमां द्रष्टि करतां मिथ्यात्वनो नाश थाय छे ने तेमां लीन थतां
अस्थिरतानो नाश थाय छे.–आम निर्मळकारणना स्वीकारथी निर्मळ कार्य प्रगटी जाय
छे; बीजुं कोई बहारमां कारण छे ज नहीं.
स्वसन्मुख थईने आत्मानुं स्वसंवेदन जेने प्रगट्युं तेनामां चैतन्यनो वीररस
प्रगट्यो, स्वानुभवनुं वीर्य प्रगट्युं, ते कायरताने (परभावने) पोतामां आववा न द्ये;
तेने पोतानी रक्षा माटे रागादिनी मदद न होय. रत्नत्रयना साधक कोई एक मुनि
संथारो करे त्यारे वैयावच्च करनारा बीजा मुनिओ तेने चैतन्यना उपदेश वडे वीरता
उपजावे छे. कोईवार मुनिने जराक पाणीनो विकल्प आवी जाय तो बीजा मुनि
वैराग्यथी कहे छे के अरे मुनि! अंदर चैतन्यना आनंदरस भर्या छे ते आनंदना जळ
पीओने! अत्यारे तो स्वानुभवना निर्विकल्पअमृत पीवानां टाणां छे. आ पाणी तो
अनंतवार पीधां, तेनाथी तृषा नहीं छीपे, माटे निर्विकल्प थईने अंदरमां स्वानुभवना
आनंदरसनुं पान करो. त्यारे ते मुनि पण बीजी ज क्षणे विकल्प तोडीने निर्विकल्प–
आनंदना दरियामां डुबकी मारे छे. ते आनंदने माटे पोताना आत्मा सिवाय बीजा
कोईनुं अवलंबन नथी.