वगेरे प्रशस्त व्यवहारना उपदेश शास्त्रमां आवे छे, पण ते बधा शुभविकल्पोथी
पार अंदरमां स्वसंवेदन–प्रत्यक्षनी जे परिणति धर्मीने वर्ते छे ते ज मोक्षमार्ग छे.
धर्मात्माने अंदरमां चिदानंद स्वभावना स्वसंवेदननुं जे जोर छे ते स्वयं प्रकाशमान
छे, तेमां बीजा कोईनी मदद नथी, के अस्पष्टता नथी. अहा, आवा
आत्मस्वभावनुं जेने संवेदन थयुं ते हवे परमात्माथी जुदो न रही शके,
स्वसंवेदनना बळे अल्पकाळमां केवळज्ञान प्रगट करीने ते पोते परमात्मा थई जशे,
ने अनंत सिद्ध भगवंतोनी साथे जईने रहेशे.
लाभ? आवो अवसर तारो चाल्यो जशे. पोताना स्वभावमां जे वैभव भर्यो छे
तेने श्रद्धावडे खेंचीने बहार लाव. जेम अंदर पाणी भर्युं छे ते फूवारामां ऊछळे छे,
तेम अंदर चैतन्यनी शक्तिना पाताळमां पाणी भर्युं छे तेमां अंतरद्रष्टि करतां
पर्यायमां ते ऊछळे छे.
केवा? चैतन्यज्योत जागती प्रकाशवती छे, ते आंधळी नथी के पोते पोताने न
जाणे.
अंतर्मुख थईने अनंत गुणरत्नोथी भरेला आखा अद्भुत दरियाने प्रतीतमां ने
अनुभवमां लई ल्ये–एवी अद्भुत तारी ताकात छे. द्रव्यस्वभावमां अद्भुत
ताकात छे तेनी सन्मुख थतां पर्यायमां पण अद्भुत ताकात प्रगटे छे. पर्याय पोते
एक समयनी छतां अनंत गुणना त्रिकाळी पिंडने कबुले–ए पर्यायनी ताकात केवी?
भगवान! तारी ताकात तो जो. जेनी सामे नजर करतां अमृतनी रेलमछेल थाय
एवा तारा वैभवनी वात अमृतचंद्राचार्य देवे करी छे. भगवाने जेवो आत्मा जोयो
तेवो आत्मा बताव्यो, ने तुं स्वसंवेदनथी प्रत्यक्ष जोई शके एवी तारामां ताकात
छे. समयसारनी शरूआतमां ज आचर्यदेवे कह्युं हतुं के अमे स्वानुभवरूप