संयोगात् द्रष्टिमङ्गेऽपि संघत्ते तद्वदात्मनः।।९१।।
आंधळामां नथी. देखवानी क्रिया तो लंगडानी छे ने चालवानी क्रिया आंधळानी छे–
आवा आंधळा अने लंगडा वच्चेना अंतरनी जेने खबर नथी ते माणस लंगडानी
द्रष्टिनो आंधळामां आरोप करीने एम माने छे के आ लंगडो ज मार्ग देखीने चाले छे.–
तेनो आ आरोप मिथ्या छे, तेने खबर नथी के मार्ग देखनारो तो उपर जुदो बेठो छे.
ए ज प्रमाणे आ शरीर तो ज्ञान वगरनुं आंधळुं–जड छे, ने आत्मा देखतो छे पण ते
शरीरनी क्रिया करवा माटे पांगळो छे. शरीर हाले–चाले तेने आत्मा जाणे छे, ते
जाणवानी क्रिया आत्मानी छे; ने शरीरादी चालवानी क्रिया तो जडनी छे.–पण जेने
जड–चेतनना अंतरनी खबर नथी, आत्मा अने शरीरनी भिन्नतानुं भान नथी एवो
अज्ञानी जीव आत्माना ज्ञाननो शरीरमां आरोप करीने एम माने छे के आ शरीर ज
जाणे छे–आंखथी ज बधुं देखाय छे, एटले शरीर ते ज आत्मा छे.–पण तेनो आ
आरोप मिथ्या छे, तेने खबर नथी के जाणनारो तो शरीरथी जुदो छे, शरीर कांई नथी
जाणतुं, जाणवानी क्रिया तो आत्मानी छे.
जड–आंधळुं तेना पगथी (–तेनी पर्यायथी)