Atmadharma magazine - Ank 286
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: श्रावण : २४९३ आत्मधर्म : ब्रह्मचर्य–अंक (चोथो) : २७ :
(अंक २८प थी चालु) * (लेखांक प२)
भगवानश्री पूज्यपादस्वामी रचित समाधिशतक उपर पूज्यश्री
कानजीस्वामीनां अध्यात्मभावनाभरपूर वैराग्यप्रेरक प्रवचनोनो सार.
जेने देहथी भिन्न आत्मतत्त्वनुं ज्ञान नथी एवो मोही जीव आत्मानी क्रियाने
देहमां जोडे छे ने देहनी क्रियाने आत्मामां जोडे छे, ते वात द्रष्टांतथी समजावे छे–
अनंतरज्ञः संघत्ते द्रष्टि पंगोर्यथाऽन्धके।
संयोगात् द्रष्टिमङ्गेऽपि संघत्ते तद्वदात्मनः।।९१।।
एक आंधळा माणसना खभा उपर लंगडो बेठो छे; ते लंगडो आंखवडे मार्ग
देखे छे, ने आंधळो चाले छे. चालवानी ताकात लंगडामां नथी ने देखवानी ताकात
आंधळामां नथी. देखवानी क्रिया तो लंगडानी छे ने चालवानी क्रिया आंधळानी छे–
आवा आंधळा अने लंगडा वच्चेना अंतरनी जेने खबर नथी ते माणस लंगडानी
द्रष्टिनो आंधळामां आरोप करीने एम माने छे के आ लंगडो ज मार्ग देखीने चाले छे.–
तेनो आ आरोप मिथ्या छे, तेने खबर नथी के मार्ग देखनारो तो उपर जुदो बेठो छे.
ए ज प्रमाणे आ शरीर तो ज्ञान वगरनुं आंधळुं–जड छे, ने आत्मा देखतो छे पण ते
शरीरनी क्रिया करवा माटे पांगळो छे. शरीर हाले–चाले तेने आत्मा जाणे छे, ते
जाणवानी क्रिया आत्मानी छे; ने शरीरादी चालवानी क्रिया तो जडनी छे.–पण जेने
जड–चेतनना अंतरनी खबर नथी, आत्मा अने शरीरनी भिन्नतानुं भान नथी एवो
अज्ञानी जीव आत्माना ज्ञाननो शरीरमां आरोप करीने एम माने छे के आ शरीर ज
जाणे छे–आंखथी ज बधुं देखाय छे, एटले शरीर ते ज आत्मा छे.–पण तेनो आ
आरोप मिथ्या छे, तेने खबर नथी के जाणनारो तो शरीरथी जुदो छे, शरीर कांई नथी
जाणतुं, जाणवानी क्रिया तो आत्मानी छे.
वळी ते अज्ञानी जीव एम माने छे के शरीर हाले–चाले–बोले ते बधी मारी
क्रिया छे, हुं ज ते क्रिया करुं छुं. पण शरीर हाले–चाले–बोले ते तो जडनी क्रिया छे, ते
जड–आंधळुं तेना पगथी (–तेनी पर्यायथी)