Atmadharma magazine - Ank 286
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: श्रावण : २४९३ आत्मधर्म : ब्रह्मचर्य–अंक (चोथो) : ४प :
१०. आ प्रमाणे आ भावनापदोने एटले के तेमां दर्शावेला एकत्वस्वरूपने
एकाग्रचित्तथी जे सदाय भावे छे ते जीव मोक्षलक्ष्मीना कटाक्षरूप जे
भ्रमरसमूह, तेने माटे ‘पद्म’ समान थाय छे.
११. आ मनुष्यभवनुं फळ धर्म छे; जो मारो ते धर्म निर्मळपणे विद्यमान छे
तो आपत्तिनी पण शुं चिंता छे? ने मृत्युनो पण शुं भय छे?
आ एकत्वभावनाद्वारा मुमुक्षु जीवो पोताना एकत्वस्वरूपने प्राप्त करो. आ
भावना एक शास्त्रमां छे, अने ते मूळ सूत्रोसहित ‘आत्मधर्म’ मां एकवार आवी
गयेल छे. जरा ध्यानपूर्वक वांचशो तो आपने पण ख्यालमां आवी जशे के ते कोनी
बनावेली छे.
श्री जैन अतिथि सेवा समिति–सोनगढ
वार्षिक मीटींग
श्री जैन अतिथि सेवा समितिनी वार्षिक मीटींग भादरवा सुदी १ ने ता. प–९–
६७ ना रोज सांजे ४–० वाग्ये प्रवचन–मंडपमां राखवामां आवी छे. सभ्योने समयसर
हाजर रहेवा विनंती छे.
लि.
हेड, श्री जैन अतिथि सेवा समिति–सोनगढ
श्री दिगंबर जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट–सोनगढ
वार्षिक मीटींग
आपणा ट्रस्टनी वार्षिक मीटींग भादरवा सुदी २ ने ता. ६–९–६७ ना रोज
सांजे ४–० वाग्ये ट्रस्टनी ओफिसमां मळशे तो दरेक ट्रस्टीओने समयसर हाजर रहेवा
विनंती छे.
लि.
फोन: ३४ प्रमुख, दि. जैन स्वा. मंदिर ट्रस्ट, सोनगढ