प्रतापे अमे हवे आ भवभ्रमणथी छूटीने आत्मसुख
पामीए,–आवी भावनापूर्वक नव कुमारिका बहेनो पू.
गुरुदेव समक्ष ब्रह्मचर्य–प्रतिज्ञा अंगीकार करे छे–ते
वखतनुं भावभीनुं द्रश्य.
Atmadharma magazine - Ank 286
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).
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