Atmadharma magazine - Ank 286
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: श्रावण : २४९३ आत्मधर्म : ब्रह्मचर्य–अंक (चोथो) : प७ :
बालविभागना सभ्योने पत्र
वहाला धर्मबंधुओ,
मनमां जरा क्षोभ साथे तमने आ पत्र लखुं छुं. बंधुओ, आप सौ जाणो ज छो के
दिन–प्रतिदिन आपणा बालविभागनुं काम केटलुं वधी रह्युं छे! बालविभागनी खूब वृद्धि
थाय ए तो बहु सारूं छे; परंतु साहित्यना बीजा कार्योनी साथे बालविभागनी व्यवस्थामां
एकला हाथे पहोंची शकातुं नथी; तेथी छेल्ला बे त्रण मासथी अव्यवस्था थई छे;
जन्मदिवसना कार्ड मोकली शकाया नथी, नवा सभ्योनी नोंध थई शकी नथी, वांचको साथे
वातचीत तेमज अवनवा लेखो पण आपी शकाया नथी. आ अंकमां पण, बालविभाग
आपवानी तीव्र उत्कंठा छतां आपी शकातो नथी. तोपण, आ अंकमां ब्रह्मचारी बहेनोनी
प्रतिज्ञाना समाचार तथा तमने उपयोगी थाय एवी बीजी अनेक सामग्री जोईने तमने
सन्तोष थशे; अने वळी ए जाणीने विशेष आनंद थशे के ब्रह्मचर्यप्रतिज्ञा लेनारा
बहेनोमांथी केटलाक तो आपणा बालविभागना जुनां सभ्यो छे. तमे तमारो धार्मिक उत्साह
वधारता रहेजो. बालविभागने जेम बने तेम तुरतमां ज व्यवस्थित करवानो प्रयत्न करीश.–
तमे बधा जे सहकार आपी रह्या छो ने लागणी बतावी रह्या छो ते बदल आभार. जय
जिनेन्द्र –तमारो भाई हरि.
*
रे आत्मा!
तारा जीवनमां उत्कृष्ट वैराग्यना जे प्रसंगो बन्या होय, ने वैराग्यनी सितार ज्यारे
झणझणी ऊठी होय...एवा प्रसंगनी वैराग्यधाराने बराबर जाळवी राखजे, फरीफरी तेनी भावना
करजे. कोई महान प्रतिकूळता, अपजश वगेरे उपद्रव प्रसंगे जागेली तारी उग्र वैराग्यभावनाने
अनुकूळता वखते पण जाळवी राखजे. अनुकूळतामां वैराग्यने भूली जईश नहीं.
वळी कल्याणकना प्रसंगोने, तीर्थयात्रा वगेरे प्रसंगोने, धर्मात्माओना संगमां थयेला
धर्मचर्चा वगेरे कोई अद्भुत प्रसंगोने, सम्यग्दर्शनादि रत्नत्रयसंबंधी जागेली कोई
उर्मिओने, तथा तेना प्रयत्न वखतना धर्मात्माओना भावोने–याद करीने फरी फरीने तारा
आत्माने धर्मनी आराधनामां उत्साहित करजे.