Atmadharma magazine - Ank 286
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: प८ : आत्मधर्म : ब्रह्मचर्य–अंक (चोथो) : श्रावण : २४९३
बोधि निमित्ते द्रढ वैराग्यभावनानो उपदेश
भावप्राभृत गा. ११० मां परम वैराग्यनो उपदेश आपतां श्री
कुंदकुंदप्रभु कहे छे के हे जीव! तें संसारने असार जाणीने स्वरूपने साधवा
माटे ज्यारे वैराग्यथी मुनिदीक्षा लीधी ते वखतना तीव्र वैराग्यने उत्तमबोधि
निमित्ते तुं याद कर...फरी फरी तेनी भावना भाव. विशुद्ध चित्तथी एटले के
सम्यग्दर्शनादि निर्मळ परिणाम सहित थईने तुं उत्कृष्ट वैराग्यनी भावना
कर. मुनिपणानी दीक्षा वखते आखा जगतथी उदास थईने स्वरूपमां ज
रहेवानी केवी उग्र भावना हती!–जाणे के स्वरूपथी बहार हवे कदी आववुं ज
नथी. आवा उत्तम प्रसंगे जागेली वैराग्यभावनाने हे जीव! फरी फरीने तुंं
चिदानंदस्वभावने ज सार जाण्यो ने संसारने असार जाण्यो ते जीव चैतन्यनी
उग्र भावनावडे भावशुद्धि प्रगट करे छे. चिदानंद स्वभाव पवित्र–अकषाय छे, तेनी
भावनाथी कषायो नष्ट थईने सम्यग्दर्शनादि पवित्र भाव प्रगटे छे. चैतन्यने साधवा
माटे जे वैराग्यनी धारा उल्लसी, के रोगना काळे जै वैराग्यभावना जागी के मरणप्रसंग
आवी पडे ते वखते जेवी वैराग्य भावना होय एवा वैराग्यने तुं सदाय निरंतर
ध्यानमां राखीने वारंवार भावना भावजे. वैराग्यभावनाने शिथिल थवा दईश नहि.
जे आराधना उपाडी तेने जीवनपर्यंत निर्वहन करजे. आराधक जीवने तीव्र रोग वगेरे
प्रतिकूळ प्रसंगे वैराग्यनी धारा विशेष उपडे छे. प्रतिकूळता आवे त्यां आर्तध्यान न करे
पण स्वभाव तरफ झूके ने तीव्र वैराग्यवडे रत्नत्रयनी आराधनाने पुष्ट करे. मुनिनी
जेम श्रावकने पण आ उपदेश लागु पडे छे. हे जीव! सम्यग्दर्शननी निर्मळता प्रगट
करी, संसारने असार जाणी, अंतर्मुख थईने सारभूत एवा चैतन्यनी भावना भाव,
वैराग्यना प्रसंगने याद करीने तेनी भावना भाव के जेथी तारा रत्नत्रयनी शुद्धता
थईने केवळज्ञाननी प्राप्ति थाय. सार शुं अने असार शुं...एने ओळखीने तुं सारभूत
आत्मानी भावना कर.
दीक्षा वखतना उग्र वैराग्य प्रसंगनी वात लईने आचार्यदेव कहे छे के अहा,
दीक्षा वखते शांत चैतन्य दरियामां लीन थई जवानी जे भावना हती, जाणे के
चैतन्यना आनंदमांथी कदी बहार ज न आवुं, एवी वैराग्यभावना हती, ते वखतनी
विरक्तदशानी धारा तुं टकावी राखजे... जे संसारने छोडतां पाछुं वाळीने जोयुं नहि,
वैराग्यथी क्षणमां संसारने छोडी दीधो, हवे आहारादिमां क्यांय राग करीश नहीं. तेम
जेणे चैतन्यने साधवो छे तेणे आखा संसारने असार जाणी परम वैराग्यभावनाथी
सारभूत चैतन्यरत्ननी भावना वडे सम्यग्दर्शनादिनी शुद्धता प्रगट करवी. *