: १४ : आत्मधर्म : भादरवो : २४९३
तेनुं निराकरण करवा माटे तेमणे ईशाराथी पाटी–पेन मंगाव्या अने तेमां लख्युं के–
ज्ञानकुतक्का हाथ मारी अरि मोहना
प्रगट्यो रूप स्वरूप अनंत सु सोहना।
यह पर्ययका अन्त सत्यकर मानना,
चले बनारसीदास फेर नहीं आवना।
जुओ, आ ज्ञानीनी जागृतदशा! बाह्यथी जोनारने एम लागे के आ मुर्छायेला
छे; पण अंदर एमनुं ज्ञान जागृत छे तेने अज्ञानी जाणतो नथी. ने अज्ञानी बहारथी
मोटीमोटी वातो करतो होय, रोग वखते धीरज राखतो होय, छतां अंतरमां भिन्न
चैतन्यना वेदन वगर, रागमां ज ज्ञानने जोडीने मुर्छायेलो छे.
आ रीते ज्ञानी अने अज्ञानीनी अंर्तदशानो मोटो फेर छे, बहारथी तेनुं माप
नथी. चिदानंद स्वरूपनी द्रष्टिमां ज्ञानी सदाय सर्व प्रसंगे निःशंक वर्ते छे; ने अज्ञानी
मूढप्राणी बहिरात्मद्रष्टिथी शरीरादिनी अवस्थाने पोतानी मानीने सदाय भ्रमरूप ज वर्ते
छे. अंतरमां जे द्रष्टि पडी छे ते सर्व अवस्थामां पोतानुं कार्य कर्या ज करे छे. ।। ९३।।
स्वाधीनपणे शोभे ते शेठ
‘शेठ’ कोण छे?
सम्यग्द्रष्टि ते साचा शेठ (एटले के श्रेष्ठ) छे; केमके श्रेष्ठ एवा
पोताना आत्मस्वरूपने ते जाणे छे, ने अन्य पासेथी कांई लेवा मांगतो
नथी, माटे ते शेठ छे. अन्य पासेथी मारे कांई जोईतुं नथी, हुं पोते ज
सर्वसाधनसम्पन्न छुं–एवी स्वाश्रितबुद्धिने लीधे ते शेठपणे शोभे छे.
‘भिखारी’ कोण छे?
मिथ्याद्रष्टि ते भिखारी छे; केमके पोताना श्रेष्ठ एवा
आत्मस्वरूपने तो ते जाणतो नथी ने अन्य पासेथी भीख मांगे छे–माटे
ते भिखारी छे. अन्य मने सुख आपशे–एवी पराश्रितबुद्धिने लीधे ते
भिखारी छे, हीन छे, ते शोभतो नथी. शोभा तो स्वाधीनपणामां छे,
पराधीनपणामां शोभा नथी.