: भादरवो : २४९३ आत्मधर्म : १३ :
होय तोपण ते वखते य ज्ञानीनी दशा भ्रमरूप नथी, पण चैतन्यस्वरूपमां ते जागृत ज
छे, देहादिमां पोतापणानो भ्रम तेने थतो नथी. जुओ, सीतानुं हरण थतां तेना
वियोगमां रामचंद्रने मूर्छा आवी जाय छे, ने झाडने तथा पर्वतने पण पूछे छे के क््यांय
जानकीने देखी?–तो शुं ते वखते गांडा छे? के भ्रमवाळा छे?–ना; ते वखतेय ज्ञानी छे,
अंतरमां ते वखतेय निःशंक भान वर्ते छे के अमे तो चैतन्यस्वरूप आत्मा छीए, सीता
के सीता प्रत्येनो राग ते अमे नथी. आ रीते ज्ञानी सर्व अवस्थाओमां भ्रांतिरहित छे,
आत्मा संबंधी भ्रांति तेमने थती नथी. ने अज्ञानी, कदाचित स्त्री वगेरे मरवा छतां
रुए नहि तोपण ते उन्मत्त अने भ्रान्त छे. सत्–असतने जुदा जाण्या वगर एटले के
स्व–परने जुदा जाण्या वगर, अज्ञानपणे पोताने फावे तेम बंनेने एकमेक माने छे,
एवा अज्ञानीनुं बधुं ज्ञान ने बधी चेष्टाओ उन्मत्तवत् छे तेथी मिथ्या छे,–एम
मोक्षशास्त्रमां उमास्वामीए पण कह्युं छे.
राग अने देहादिनी बधी अवस्था मारी छे–एम अज्ञानीने सर्व अवस्थामां
भ्रम वर्ते छे, ने ज्ञानी तो ते सर्व अवस्थाथी पोताना आत्माने भिन्न जाणे छे,
ज्ञानानंद स्वरूपे ज ते पोताना आत्माने देखे छे, तेथी सर्व अवस्थामां ते भ्रांतिरहित
ज छे. ऊंघ वखतेय ते भ्रांतिरहित छे. अने अज्ञानी जागृतदशामांय भ्रांतिसहित छे.
देहादिनी अवस्थाने जे पोतानी माने छे तेने ज्ञानीओ ‘गांडा–उन्मत्त’ जाणे छे. अने
ज्ञानी लडाई वगेरेमां होय, स्त्रीना वियोगथी मूर्छित थई जाय–त्यां अज्ञानीने एम
लागे छे के आनी दशा भ्रमरूप छे;–पण ना, ते मूर्छादि वखतेय ज्ञानी चिदानंदस्वरूपमां
भ्रांतिरहित जागृत ज छे. ज्ञानीनी अंर्तदशाने अज्ञानी ओळखतो नथी. अंतरात्मा
अने बहिरात्मानी ओळखाण बाह्यद्रष्टिथी थती नथी. कोई अज्ञानी रोगादि प्रतिकूळता
आवे छतां उंकारो पण न करे, त्यां बाह्यद्रष्टिने तो एम लागे के आ मोटो ज्ञानी छे!–
पण ज्ञानी कहे छे के तेनी चेष्टा उन्मत्त जेवी छे. अने ज्ञानीने रोगादि प्रसंगे कदाच
वेदनानी भींस लागे त्यां बाह्यद्रष्टि जीवोने एम लागे छे के आ अज्ञानी हशे! पण ते
वेदनानी भींस वखते (–मोढामांथी उंकारा थतो होय ते वखतेय) अंतरमां
ज्ञानस्वभाव उपर ज ज्ञानीनी मीट छे,–ज्ञानस्वरूपमां ते निर्भ्रात छे; ते दशाने अज्ञानी
ओळखी शकता नथी.
जुओ, पं. बनारसीदासजी ज्यारे छेल्ली स्थितिमां हता, मरणनी तैयारी हती
त्यारे भाषा बंध थई गई हती, पण हजी प्राण छूटता न हता, त्यारे आसपास
ऊभेला लोकोने एम लाग्युं के आनो जीव क््यांक ममतामां रोकाणो छे, तेथी देह छूटतो
नथी. परंतु पंडितजी तो अन्तकाळ नजीक समजीने पोतानी भावनामां हता. लोकोनी
मूर्खता देखीने