Atmadharma magazine - Ank 287
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: १६ : आत्मधर्म : भादरवो : २४९३
जीवननी सफळता
अरे, जगतना जीवो पोताना चैतन्यसुखने भूलीने विषय–कषायमां सुख मानी रह्या
छे; परंतु पोतानुं जे चैतन्यसुख छे तेनी संभाळ करवानो अवकाश लेता नथी; तेमनुं तो
जीवन विषयोमां वेडफाई जशे ने नकामुं चाल्युं जशे. विषयोथी विरक्त थईने आत्मिक
सुखना अभ्यासमां जे जीवन वीते छे ते जीवन सफळ छे.
अरिहंतोनी आराधना
सर्वज्ञने ओळखवा माटे आत्मस्वभावनी सन्मुख थवुं पडे छे. सर्वज्ञने केम
ओळखवा तेनी पण अज्ञानीने खबर नथी. भाई, सर्वज्ञ एटले तारो ज्ञानस्वभाव,
सर्वज्ञने ते व्यक्तरूप छे, तारामां ते शक्तिरूप छे; ते शक्तिनी सन्मुखता वडे सर्वज्ञता व्यक्त
थशे. माटे तारी शक्तिनी सन्मुख थईने तेनी प्रतीत कर तो तने सर्वज्ञनी खरी प्रतीत थाय,
तेनो खरो महिमा जागे; ने ए ज अरिहंतोनी आराधना छे.
ब्रह्मजीवन
आत्मामां ज साचुं सुख छे–एम समजीने आत्माना अतीन्द्रिय सुखनी जेने
अभिलाषा जागी छे अने बाह्य विषयोमां क््यांय सुख नथी एम समजीने सर्व विषयो जेने
विरस लाग्या छे;–मारा असंग चैतन्यतत्त्वने कोई परद्रव्यनो संग नथी, परना संगथी
मारामां सुख नथी पण परना संग वगर मारा स्वभावथी ज मारुं सुख छे– एम जे जीवे
पोताना अतीन्द्रिय सुखस्वभावनी रुचि ने लक्ष कर्युं छे अने चैतन्यना रंगथी सर्वे
ईन्द्रियविषयनो रंग ऊडी गयो छे–एवा जीवने खरुं ब्रह्मजीवन खरुं आत्मजीवन प्रगटे छे.
आवा आत्मलक्षी ब्रह्मजीवन वडे सर्वे गुणोनी खीलवट थाय छे.
स्वभावना आंगणे–
जेणे अरिहंत जेवा पोताना आत्माने मन वडे जाणी लीधो ते जीव स्वभावना आंगणे
आव्यो छे. परंतु आंगणे आव्या पछी हवे स्वभावनो अनुभव करवामां अनंत अपूर्व पुरुषार्थ
छे. आ चैतन्यभगवानना आंगणे आव्या पछी–एटले के मन वडे आत्मस्वभावने लक्षमां लीधा
पछी चैतन्यस्वभावनी अंदर ढळीने अनुभव करवा माटे अनंत पुरुषार्थ करे ते ज चैतन्यमां
ढळीने सम्यग्दर्शन प्रगट करे छे.(ब्रह्मचर्य अंक १ मांथी)
बालकपणमां धर्मसेवन
शांतिनाथ भगवान पूर्वे पंचमभवे ज्यारे वज्रयुधचक्रवर्ती हता, त्यारे कनकशांति
नामनो तेमनो पौत्र वैराग्य थतां विचारे छे के–
चतुरपुरुषोए बाळकपणथी ज धर्मनुं सेवन करवुं जोईए, केमके यमराज क््यारे
तेडवा आवशे–ते कही शकातुं नथी. (शांतिनाथ पुराण)