तेनुं लक्ष–तेनुं जोर–तेनो आदर–तेनो उत्साह–तेनी परिणतिनो झुकाव तो अभेद
आत्मवस्तुना अनुभव तरफ ज छे...अने एना जोरे ज ते साक्षात् अनुभव करीने
सम्यग्दर्शनादि पामे छे.
व्यवहारभूमिका छे; ते भूमिकामां हजी विकल्प छे. पण अंतरमां जे स्वभावनो निर्णय
कर्यो छे ते स्वभावमां ज्ञाननुं वलण छे, ते वलणना बळे श्रुतज्ञान ज्यारे अंतरमां
वळीने आत्मस्वभावने अनुभवे छे त्यारे निर्विकल्पदशा थाय छे, ने आ
निर्विकल्पदशामां विकल्प जुठो थई जाय छे–एटले के तेनो अभाव थई जाय छे. ज्ञानना
बळथी जे निर्णय कर्यो हतो तेनुं आ फळ छे; पण पहेलां जे विकल्प हतो तेनुं कांई आ
फळ नथी. विकल्प वखते पण ते हेयपणे हतो, ने ज्ञाननुं बळ तेनाथी जुदुं काम करतुं
प्रत्यक्ष–स्पष्ट स्वसंवेदनमां आवे छे, कोईना अवलंबन वगर अतीन्द्रियपणे आत्मा
पोते पोताने अनुभवाय छे. आवो आत्मअनुभव करवो ते वीतरागी क्षमादिक
दशधर्मोनी आराधनानुं मूळ छे; ने आवी आत्मआराधनानुं नाम ज ‘पर्युषण’ छे.
आवी उत्तम क्षमा अनंतकाळना परिभ्रमणथी बचावनार छे. आवी क्षमावडे आत्माना
शुद्ध ज्ञान ने आनंदनी प्राप्ति थाय छे. क्षमा ते आनंदनी दातार छे. आत्माना
शुद्धआनंदगुणनी लीनता एवी थाय के प्रतिकूळ प्रसंगमांय क्रोधनी उत्पत्ति न थाय,–
आवी उत्तमक्षमा ते पूर्ण आनंदरूप मोक्षनुं साधन छे. क्रोध वडे आत्माना आनंदनो
घात थाय छे, माटे ते दुःखदायक छे. सर्वज्ञपरमात्माए आत्मानो जे ज्ञान–
आनंदस्वभाव जोयो छे–तेवा स्वभावने श्रद्धा–ज्ञानमां लईने तेनी उपासना करवी–ते
धर्म छे, ते उत्तमक्षमा छे. तेनो आजे (भाद्र सुद पांचम) दिवस छे. पर्युषण एटले