Atmadharma magazine - Ank 287
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: २२ : आत्मधर्म : भादरवो : २४९३
जे स्वरूप समज्या विना पाम्यो दुःख अनंत,
समजाव्युं ते पद नमुं, श्री सद्गुरु भगवंत...रे गुणवंता ज्ञानी
अमृत वरस्या छे पंचमकाळमां........
अमृत वरस्या छे तारा आत्ममां........
–आम अमृतनी वर्षापूर्वक पांचमो कळश शरू करतां कह्युं के चैतन्यस्वरूप
आत्माने जे निर्विकल्पपणे अनुभवे छे तेने विकल्परूप समस्त व्यवहार जुठो छे–
अभूतार्थ छे. अज्ञानीने अनादिथी आत्मानो अनुभव नथी, ते ज्यारे आत्मानो
अनुभव करवानी सन्मुख थाय छे त्यारे ‘हुं चेतनस्वरूप छुं’ ईत्यादि विचाररूप
व्यवहार आवे छे, गुण–गुणीभेदनो एटलो विकल्प आव्या वगर रहेतो नथी. पण पछी
ज्यारे स्वभाव तरफ झुकीने साक्षात् निर्विकल्प अनुभव करे छे त्यारे तेने कोई विकल्प
रहेतो नथी–व्यवहारनुं अवलंबन रहेतुं नथी. भूतार्थस्वभावनो अनुभव गुणभेदना
विकल्प वडे थई शके नहीं. चेतनस्वभावनो निर्णय अने लक्ष करवा टाणे पहेलां साथे
विकल्प होय छे, पण ते विकल्प कांई अनुभवनुं साधन नथी; ते विकल्पना बळथी कांई
वस्तुस्वभाव लक्षमां आवतो नथी, ज्यारे अंतर–अवलोकन वडे चैतन्यचमत्कार
आत्माने लक्षगत करीने अनुभवे छे त्यारे गुणभेदनो विकल्प पण छूटी जाय छे. माटे
अनुभवमां ते भेद–व्यवहारने जुठो एटले के अभूतार्थ कह्यो छे.–आवा आत्म
अनुभवनी अत्यंत प्रयोजनरूप आ वात छे.
सर्वज्ञपरमात्मा सीमंधरभगवान अत्यारे विदेहमां बिराजे छे. भगवानना
श्रीमुखे जे वात आवी ते कुंदकुंदाचार्यदेवे आ समयसारमां झीली छे. निर्विकल्प
आत्मअनुभवमां शुद्ध निश्चय आत्मानुं ज अवलंबन छे, रागादि परभावो बहार रही
जाय छे. विकल्पनो–भेदनो–व्यवहारनो आश्रय करीने अटके तेने सम्यग्दर्शन थतुं नथी.
सम्यग्दर्शन थवाना काळे अभेद आत्मानी ज अनुभूति होय छे. ते अनुभूतिमां
विकल्पनो अभाव छे. आवो अनुभव तिर्यंच–सम्यग्द्रष्टिने पण थाय छे. असंख्याता
तिर्यंचो निर्विकल्प आत्मअनुभूतिने पामेला अत्यारे मध्यलोकमां (स्वयंभूरमण
समुद्रमां) विद्यमान छे. रावणनो मोटो हाथी (त्रिलोकमंडन) पण आवा अनुभवने
पाम्यो हतो. हाथीनो जीव ने भरतनो जीव बंने पूर्वे मित्र हता. ते हाथीने पूर्वभवनुं
जातिस्मरणज्ञान थयुं हतुं; ने तेथी ते संसारथी एकदम विरक्त थईने आत्मज्ञान
पाम्यो. आठ वर्षना बाळक पण सम्यग्दर्शन पामे छे ने अंतरमां आवी आत्मअनुभूति
करे छे. ने आवी अनुभूति करवी ते धर्म छे.