Atmadharma magazine - Ank 287
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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क्षमापना
श्री पंचपरमेष्ठी भगवंतो, जिनवाणीमाता, अने रत्नत्रयधर्म–के जेओ जगतना
महा उपकारी छे, तेमना प्रत्ये कदी कांईपण अविनयादि अपराध थयो होय तो अति
नम्रभावे भक्तिपूर्वक क्षमापना चाहुं छुं. जेओनो आ बालकना जीवनमां, तेमज
आत्मधर्मना सर्वे पाठको उपर महान उपकार छे एवा कृपाळु गुरुदेव, तेमज बंने
भगवती माताओ प्रत्ये पण जे कांई अपराध थया होय ते सर्वेनी अत्यंत विनय–
भक्तिपूर्वक क्षमापना चाहुं छुं. आ उपरांत समस्त साधर्मी बंधुओमां पण कोईनुं दिल
दुभायुं होय ते बदल हार्दिक विनय ने वात्सल्यपूर्वक क्षमापना चाहुं छुं. –हरि.
आजना युवानो
समाजमां केटलाक लोको तेमज पत्रकारो पण घणीवार कहे छे के आजना युवको
धर्ममां रस लेता नथी–पण अमे नम्रतापूर्वक कहीशुं के ए वात साची नथी; आजना
आपणा हजारो सुशिक्षित जैन युवक बंधुओ धर्ममां घणा उत्साहथी रस लई रह्या छे.
मात्र दर्शन–पूजन ज नहि, ते उपरांत धर्मना तत्त्वज्ञानमां पण ऊंडो रस लई रह्या छे,
तत्त्वचर्चा करे छे, उत्तम शास्त्रोनुं वांचन–श्रवण करे छे. मात्र आत्मधर्मना
बालविभागमां ज ६०० उपरांत कोलेजियन युवानो उत्साहथी धर्मचर्चामां भाग लई
रह्या छे, कोलेजना भणतरनी साथे ज तेओ धर्ममां पण रस लई रह्या छे, तेमज
मेट्रिकनी आसपासना पण पांचसो जेटला विद्यार्थीओ आमां उत्साहथी रस लई रह्या
छे.–आ उपरथी ख्याल आवशे के आजना युवको धर्ममां केटलो रस ल्ये छे! खरूं जोतां
गांधीजीना जमानामां युवानोमां जे राजकीय रंग हतो ते राजकीय उत्साह हवे ओसरी
रह्यो छे ने तेने बदले आपणा जैनयुवानोनुं वलण धार्मिक उत्साह तरफ झूकी रह्युं छे,
वळी आजना युवानो अंधश्रद्धाथी नथी दोरवाता परंतु तत्त्वज्ञाननी कसोटीथी परीक्षा
करीने धर्मनुं रहस्य समजवानो प्रयत्न करे छे–ते पण सारी वात छे. आपणे ईच्छीए के
जैनसमाजना समस्त युवानो अने बाळको धर्ममां वधु ने वधु उत्साहथी भाग ल्ये,
तेमने ते प्रकारनुं प्रोत्साहन आपवामां आवे–अने तेओ जैनशासनना प्रभावने
उन्नतिना शिखरे पहोंचाडीने विश्वमां तेनो धर्मध्वज फरकावे.
–ब्र. ह. जैन.