Atmadharma magazine - Ank 287
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: भादरवो : २४९३ आत्मधर्म : १ :
वार्षिक लवाजम
वीर सं. २४९३
त्रण रूपिया भादरवो
* वर्ष २४ : अंक ११ *
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शांतिनो हिमालय
अहो, जगतमां आ चैतन्यस्वभाव ए तो शांतिनो
डुंगर छे. ‘हिमालय’ एटले बरफनो डुंगर; तेम आ
चैतन्यस्वभाव आत्मा परम शांतरसनो हिमालय छे. जेम
उनाळानी गरमीमां हिमालयनी वच्चे जईने बेसे तो केवी
ठंडक लागे! तेम परभावोनी आकुळताथी बळबळता आ
संसारमां जो शांतरसना हिमालय एवा आत्मस्वरूपमां
जईने बेसे तो उपशांतरसनी परम ठंडक एटले के निराकुळ
शांति वेदाय. प्रभु! एकवार आवा तारा गुणमां नजर तो
कर. तारा गुणना कार्यने ओळखीने एनी शांतिनो स्वाद
एकवार चाख तो खरो!–पछी तने तारा ए शांतरस पासे
आखो संसार नीरस लागशे,–बळबळता ताप जेवो
लागशे. जेम बरफ ए ठंडकनो ढीम छे तेम आ चैतन्यप्रभु
एकला आनंदनो ढीम छे; शांतरसनो सागर एनामां भर्यो
छे. आवा तारा स्वभावमां जईने नजर तो कर; विकारनो
आताप एमां छे ज नहीं. विकारनो स्पर्श पण तारा
स्वभावमां नथी. आवा स्वभावनी शांतिमां सन्तो वसे छे,
ने जगतने माटे तेमणे आवो स्वभाव प्रसिद्धिमां मुक््यो छे:
अरे जगतना जीवो! तमारा आवा अद्भुत आत्मवैभवने
तमे जाणो...रे जाणो...जगतना तापथी बचवा शांतिना आ
हिमालयमां आवो रे आवो.
(–आत्मवैभव)