गंभीर भावथी ते चर्चानो प्रसंग याद करीने ज्यारे गुरुदेव संभळावे छे त्यारे
जिज्ञासुना रोमेरोम पुलकित थईने ज्ञानीना स्वानुभव प्रत्ये उल्लसी जाय छे. ते
चर्चामां गुरुदेवे पूछेलुं के ज्ञानचेतनानुं फळ शुं? ज्ञानचेतना उघडे एटले बधा
शास्त्रोना अर्थनो उकेल करी नांखेने?
पामी जाय एवी ज्ञानचेतना छे. ज्ञानचेतनानुं फळ तो ए छे के पोताना आत्माने चेती
ल्ये. शास्त्रना भणतर उपरथी ज्ञानचेतनानुं माप नथी. ज्ञानचेतना तो अंतरमां
आत्माने चेते छे, ज्ञानस्वरूप आत्माने जे चेते–अनुभवे ते ज्ञानचेतना छे.
ज्ञानचेतनानुं कार्य अंतरमां आवे छे, बहारमां नहीं. कोई जीव शास्त्रना अर्थनी झपट
बोलावे माटे तेने ज्ञानचेतना उघडी गई एम तेनुं माप नथी; केमके कोईकने ते
प्रकारनो भाषानो योग न पण होय, ने कदाच तेवो परनो विशेष उघाड पण न होय;
अथवा कदाच बहारनो तेवो विशेष उघाड होय तोपण कांई ज्ञानचेतनानी निशानी ते
नथी. ज्ञानचेतनानुं कार्य तो अंतरनी अनुभूतिमां छे. ज्ञानने अंतरमां वाळीने जेणे
रागथी भिन्न स्वरूपने अनुभवमां लई लीधुं छे ते जीवने अपूर्व ज्ञानचेतना अंतरमां
खीली गई छे. एनी ओळखाण थवी जीवोने कठण छे.
आत्माना साक्षात्कारनुं कार्य करे छे. ओछुं–वधारे जाणपणुं हो तेनी साथे संबंध नथी,
पण ज्ञानानंदस्वभावनी सन्मुख थतां ज्ञानचेतना प्रगटे छे. ते ज्ञानचेतनामां आत्मा
अत्यंत शुद्धपणे प्रकाशे छे. आवी ज्ञानचेतना चोथा गुणस्थानथी शरू थाय छे. ज्ञानी
आवी ज्ञानचेतनावडे केवळज्ञानने बोलावे छे.