Atmadharma magazine - Ank 287
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: भादरवो : २४९३ आत्मधर्म : ३१ :
ए त्रणे अभेदपणे आत्मारूप वर्ते छे त्यारे ते जीव, सर्वज्ञनो मार्ग पाम्यो एम कहो, के
निजस्वरूपने पाम्यो एम कहो,–बंने जुदा नथी.
जे निजपद एटले के आत्मस्वरूप सर्वज्ञ भगवाने पोताना ज्ञानमां प्रत्यक्ष
जाण्युं, पण वाणी द्वारा पूरुं न कहेवायुं, भगवानना ज्ञानमां आव्युं पण वाणीमां पूरुं
न आव्युं, ते पदना महिमाने अन्य वाणी तो शुं कहे? ‘अनुभवगोचर मात्र रह्युं ते
ज्ञान जो’ वाणीथी अगोचर अने पोताना स्वानुभवथी गोचर छे. आत्मानुं निजपद
तो पोताना स्वसंवेदनज्ञानथी ज वेदावा योग्य छे–जणावा योग्य छे–प्राप्त करवा योग्य
छे–प्रगट करवा योग्य छे–अनुभव करवा योग्य छे.–ए प्रमाणे निजपदनो महिमा करीने
त्यार पछी छेल्ली कडीमां ते पदनी प्राप्ति माटे भावना करतां कहे छे के–
एह परमपद प्राप्तिनुं कर्युं ध्यान में,
गजा वगर ने हाल मनोरथरूप जो.
तोपण निश्चय राजचंद्र मनने रह्यो,
प्रभु आज्ञाए थाशुं ते ज स्वरूप जो... अपूर्व
आवा चैतन्यस्वरूपी निजपदनुं पोताने भान तो थयुं छे, पण हजी पूर्ण प्राप्ति
थई नथी, तेथी पूर्णतानी प्राप्तिनी भावना करी छे. अने तेनी प्राप्ति जरूर थशे एम
पोतानी निःशंकता छे.
भरूचना एक भाई अंर्तद्रष्टि वगर बाह्यक्रिया विधि–निषेधना आग्रही हता,
तेमना उपरना एक पत्रमां श्रीमद् लखे छे के–‘अनेकांतिक मार्ग पण सम्यक् एकांत
एवा निजपदनी प्राप्ति कराववा सिवाय बीजा अन्य हेतुए उपकारी नथी.’
–आ एक
वाक््यमां श्रीमदे सर्वज्ञना हृदयनो मर्म गोठव्यो छे, बधा शास्त्रोनो छेवटनो सार आमां
बतावी दीधो छे, पात्र जीव होय ते तेनुं रहस्य समजी जाय. श्रीमद्ना वचनो पाछळ एवो
गूढ भाव रहेलो छे के गुरुगम वगर पोतानी मेळे एनो पत्तो खाय तेम नथी. घणा जीवो
व्यवहार व्रत, तप, उपवासादि बाह्यक्रियामां, तेम ज बाह्य विधि–निषेधना आग्रहमां
अटकी रहे छे ने तेमां ज सर्वस्व मानी बेसे छे; परंतु ते व्रतादिमां पर तरफ जती
लागणीनो भाव तो शुभराग छे,–तेमां ज जे धर्म मानीने अटकी पड्या छे तेने श्रीमद् आ
एक वाक््यद्वारा अनेकान्तमार्गनुं रहस्य समजावीने अंतरमां वाळवा मांगे छे. आ एक
लीटीमां केटलुं रहस्य रहेलुं छे तेनुं माप बहारथी न आवे. तेनुं द्रष्टांत–
एक बाई चोखानी कमोद खांडती हती, तेमां चोखा तो कसदार होवाथी नीचे उतरता
हता, अने फोतरां उपर देखातां हतां. त्यां बीजी बाईए ते जोयुं. तेणे अंदरना चोखा तो न
देख्या ने बहारना एकलां फोतरां जोयां. एटले पेली बाई फोतरां खांडती लागे