Atmadharma magazine - Ank 288
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : २४९३ आत्मधर्म : ७ :
जो आत्मा परनां कार्य करे तो पोतानुं काम करवा नवरो क््यारे थाय?
अने जो आत्मानुं कार्य बीजो करे तो पोते पोतानुं हित क्यारे करे?
अरे, तुं पोते अनंतशक्तिसम्पन्न भगवान, ने तारुं कार्य बीजो करे? शुं तुं
राजा राम जेवा महापुरुष धर्मात्मा छ मास सुधी लक्ष्मणना मृत शरीरने
साथे लईने फर्या, ते वखतेय ए धर्मात्माने अंतरमां निजवैभवनुं भान हतुं,
लक्ष्मण प्रत्येना रागनी साथेय पोताना स्वभावनुं कारण–कार्यपणुं स्वीकारता न
हता. अने ए वखते रामचंद्रजीना बे कुमारो संसारथी विरक्त थईने रजा मांगे छे
के हे पिताजी! आ असार संसारथी हवे अमारुं मन विरक्त थयुं छे. अमे हवे
परम सारभूत अमारा असंयोगी तत्त्वने साधवा जईए छीए. आ दुःखमय
संसारनो नाश करनार ने परम आनंदने उपजावनार एवो जे अमारो
चैतन्यस्वरूप आत्मा, तेने साधवा अमे जईए छीए. अमे हवे निजवैभवने
साधशुं ने सिद्धनी पंक्तिमां जईने रहीशुं. अमारा अंतरमां अमारो निजवैभव
अमे स्वानुभवद्वारा जोयो छे. जोयेला वैभवने हवे अमे अंतरमां एकाग्र थईने
साधशुं. आम कहीने, पिताजीने प्रणाम करी तेओ वनमां चाल्या गया, ने मुनि
थईने आत्मध्यानवडे केवळज्ञानने साध्युं, पछी पावागढथी सिद्धपदने पाम्या.
आवी शक्ति दरेक आत्मामां छे ने दरेक आत्मा आवा निजपदने साधी शके छे.
सीताजी जेवा पण अग्निपरीक्षा पछी संसार छोडीने आवा निजपदने साधवा
वैराग्यथी चाली नीकळ्‌या: अरे! आवो संसार! तेनाथी हवे बस थाओ...बस थाओ.