Atmadharma magazine - Ank 288
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: ६ : आत्मधर्म : आसो : र४९३
द्रव्यगुण ने पर्याय त्रणेय अन्य वडे कराता नथी. पर्याय कार्य छे–ए खरुं, पण
तेथी कांई ते बीजावडे कराय छे–एम नथी. कार्य कदी कारण वगर न होय,–पण ते
कारण पोतामां के परमां? कार्य पोतामां ने कारण परमां–एम होय नहि. जो
कारण परमां होय तो ते कार्य पोतानुं न रह्युं पण परनुं थई गयुं. पोताना कार्यनुं
कारण पोतामां ज छे, परनी साथे तेने कारण–कार्यपणुं नथी, एवो ज वस्तुनो
स्वभाव छे.
वळी, जे निर्मळज्ञानादि कार्य छे तेनुं कारण राग पण नथी. जो राग तेनुं कारण
होय तो ते ज्ञान आत्मानुं कार्य न रह्युं पण ते रागनुं कार्य थई गयुं. कारण अने कार्य
एक जातना होय, विरुद्ध जातना न होय, तेमज कारण अने कार्य एक वस्तुमां ज होय.
भिन्न–भिन्न वस्तुमां न होय; आ वस्तुस्वभावना त्रिकाळी नियमो छे, तेने कोई फेरवी
शके नहीं.
द्रव्य–गुण तो परथी न थाय ने पर्याय परथी थाय–एम तुं कहे छे, पण
भाई! द्रव्य–गुणमां तो कार्य थवापणुं छे ज क्यां? कार्य थवापणुं तो पर्यायमां ज
छे. ते पर्यायने पर साथे कारण–कार्यपणुं नथी–एवो आत्मानो स्वभाव छे. ते
पर्यायनुं कारण आत्मामां ज छे. आत्मानो आनंदस्वभाव छे एटले ते आनंदनी
पर्याय परथी न थाय; परवस्तु कारण थईने आत्माने आनंद आपे एम कदी बनतुं
नथी. ए ज रीते ज्ञान पण आत्मानो स्वभाव छे. ते ज्ञाननी पर्याय परथी न
थाय; परवस्तु कारण थईने आत्माना ज्ञानकार्यने उपजावे एम कदी बनतुं नथी.
ए रीते आत्माना अनंतगुणमांथी एक्केय गुणनुं कार्य परथी थतुं नथी. तथा
गुणनी पर्याय प्रगटीने परमां कांई करे एम बनतुं नथी, आ रीते भगवान
आत्माना आनंदमां ज्ञानमां श्रद्धामां क्यांय परनु कार्य नथी; आत्मा परद्रव्य वगर
एकलो पोतानुं कार्य करी शके छे. आ रीते धर्मीजीव पोताना कार्य माटे पोतानी
सामे जुए छे ने स्वाश्रये निर्मळकार्य प्रगट करे छे.
जोके रागादि विकारमां पण परनुं कारणपणुं नथी; पण अत्यारे आत्मानी
शक्तिना वैभवनी वात छे एटले तेमां निर्मळकार्यनी ज वात आवे, विकारनी वात
एमां न आवे. वैभवमां विभाव नथी. जगतमां