Atmadharma magazine - Ank 288
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : र४९३ आत्मधर्म : प :
पोते सर्वज्ञ जेटला वैभवथी पूरो परमात्मा छे; रागादि विकल्प ते तेनुं
आत्माने परनी साथे जरापण कारण–कार्यपणुं नथी. त्यारे कोई एम कहे छे के,
तो अहीं आचार्यदेव कहे छे के भाई! तने आत्माना अकारण–कार्यस्वभावनी
खबर नथी. अकारण कार्यस्वभाव द्रव्य–गुण–पर्याय त्रणेमां व्यापक छे, एटले जेम
द्रव्य–गुण अन्य वडे कराता नथी तेम तेनी पर्याय पण अन्यवडे कराती नथी. द्रव्य–गुण
अन्य वडे न थाय ने पर्याय अन्य वडे थाय–एम माने तो तेणे अकारण–कार्य शक्तिने
द्रव्य–गुण–पर्याय त्रणेमां व्यापक न मानी. पण, जेम आत्मामां ज्ञानशक्ति होवाथी
तेना द्रव्य–गुण ने पर्याय त्रणेय ज्ञानमय छे, तेम आत्मामां अकारण–कार्यशक्ति
होवाथी तेना