Atmadharma magazine - Ank 288
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: ४ : आत्मधर्म : आसो : र४९३
छे तेने तो पोताना अकर्ता–ज्ञानस्वभावनी प्रतीत नथी. ज्ञानस्वरूप आत्माने जाणे
त्यां पर साथे कर्तृत्वबुद्धि रहे नहीं. आत्मामां जे अनंत गुणो छे ते बधाय
पोतपोतानुं कार्य करे छे, कोईनुं कार्य परथी थतुं नथी. हुं कारणरूप थईने परनां
काम करुं ने पर चीजने मारा कार्यनुं कारण बनावुं–एम अज्ञानी माने छे, तेने
पोताना के परना स्वभावनी खबर नथी, आत्मानो वैभव तेणे जोयो नथी.
आत्मानो स्वभाव समुद्र जेवो गंभीर छे. अनंत गुणनो वैभव तो आत्मा
सिवाय बीजा जड पदार्थोमां पण छे, पण ते पदार्थोने पोताना वैभवनी खबर
नथी; तेमना वैभवने पण जाणनारो तो आत्मा छे. आत्मा पोताना ज्ञानवैभव वडे
सर्व पदार्थोने जाणे छे, ते ज्ञानवैभव महान छे, ते साररूप छे, तेने जाणतां परम
सुख थाय छे.
निजगुणनो वैभव धरनार आत्मा शुं करे? ने कई रीते तेनुं कार्य थाय तेनी
अज्ञानीने खबर नथी. आत्माना निजगुणनुं कार्य एटले सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र
वगेरे निर्मळ पर्यायो, ते अन्यथी थता नथी एटले बीजो तेनुं कारण नथी. तेमज
ते सम्यग्दर्शनादि प्रगटीने बीजामां कांई करी द्ये एवुं पण तेनामां नथी. आ रीते
आत्मा बीजानुं कार्य नथी, ने पोते बीजानुं कारण नथी. अज्ञानी परथी कार्य थवानुं
माने छे,–माने भले पण तेम थतुं नथी. ए ज रीते परना कार्य करवानुं माने छे,
माने भले पण करी शकतो नथी. नथी थतुं छतां माने छे–ते अज्ञान छे. पोतानी
अवस्थानुं कार्य परथी थवानुं माने छे त्यांसुधी ते परनी सामे ज जोया करे छे.
परमांथी तेनी द्रष्टि (–एकत्वबुद्धि) हटती नथी ने तेनुं मिथ्यात्व मटतुं नथी. मारा
आत्मानी कोई शक्ति के तेनी अवस्था परथी थती नथी, ने परमां कांई करती
नथी, परनी साथे मारे कांई ज कारण–कार्यपणुं नथी–एम पोताना स्वभावनो
निर्णय करे तो परमांथी द्रष्टि हटीने स्वभाव तरफ वळे, एटले स्वभावनुं निर्मळ
कार्य (सम्यग्दर्शनादि) प्रगटे, ने मिथ्यात्व टळे.
‘ज्ञानमात्र भाव’ कहेतां द्रव्य–गुण–पर्यायनो जेटलो समूह लक्षित थाय छे
ते बधोय एक आत्मा छे. अकारण–कार्य स्वभाव पण तेमां समाई जाय छे. पण
राग तेमां समातो नथी. केमके रागादिभावो कांई ज्ञानलक्षण वडे