Atmadharma magazine - Ank 288
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : र४९३ आत्मधर्म : ३ :
आत्मानो स्वाधीन स्वभाव
आत्माना कारण–कार्य पोतामां छे,
पर साथे कारण–कार्यपणुं नथी
(लेखांक बीजो गतांकथी चालु)
हे जीव! तारे जे सम्यग्दर्शनादि कार्य करवुं छे, ते कार्यनुं कारण
तारामां छे, परमां तेनुं कारण नथी; परवस्तु तारा कार्यने करती
नथी, ने तुं परना कार्यने करतो नथी. आ रीते
अकारणकार्यस्वभाव पर साथे कारण–कार्यपणानी बुद्धि
छोडावीने आत्मानो स्वाधीन स्वभाव बतावे छे, ने
महात्मा कहे छे के अरे आत्मा! भगवान तीर्थंकरदेवे आवो आत्मा जाणीने कह्यो
छे, संतोए पोताना अंतरमां आवो आत्मा अनुभव्यो छे. तारा आवा आत्माने
भूलीने तुं चार गतिमां रखड्यो ने तें महा दुःख भोगव्या. तारो स्वभाव मोटो छे ने
तारा दुःखनी वीतककथा पण मोटी छे; ते दुःख मटाडवानी, ने आत्मसुख प्र्राप्त करवानी
आ वात छे. तारा स्व–वैभवने संभाळतां तेमां दुःख क्यांय छे ज नहीं. जैनशासनमां
वीतरागी सन्तोए आवा आत्मवैभवनी प्रसिद्धि करी छे.
* * *
अनेकान्तस्वरूप आत्मानी अकारण–कार्यशक्ति एम बतावे छे के तारुं कार्य
करवा माटे पर साथे कांई संबंध नथी; ज्ञानस्वरूप आत्मामां पोतामां एवी ताकात छे
के पोताना कार्यनुं कारण पोते ज थाय. आत्मामां एवो स्वभाव छे के तेनुं कार्य बीजाथी
करातुं नथी, ने पोते बीजाना कार्यनुं कारण थतो नथी. पर साथे जेने कर्ताकर्मनी के
कारण–कार्यनी बुद्धि