तारामां छे, परमां तेनुं कारण नथी; परवस्तु तारा कार्यने करती
नथी, ने तुं परना कार्यने करतो नथी. आ रीते
अकारणकार्यस्वभाव पर साथे कारण–कार्यपणानी बुद्धि
छोडावीने आत्मानो स्वाधीन स्वभाव बतावे छे, ने
तारा दुःखनी वीतककथा पण मोटी छे; ते दुःख मटाडवानी, ने आत्मसुख प्र्राप्त करवानी
आ वात छे. तारा स्व–वैभवने संभाळतां तेमां दुःख क्यांय छे ज नहीं. जैनशासनमां
वीतरागी सन्तोए आवा आत्मवैभवनी प्रसिद्धि करी छे.
के पोताना कार्यनुं कारण पोते ज थाय. आत्मामां एवो स्वभाव छे के तेनुं कार्य बीजाथी
करातुं नथी, ने पोते बीजाना कार्यनुं कारण थतो नथी. पर साथे जेने कर्ताकर्मनी के
कारण–कार्यनी बुद्धि