कार्यपणुं नथी. वस्तुनो स्वभाव द्रव्य–गुण–पर्याय त्रणेमां व्यापक छे. द्रव्य–गुण–पर्याय
त्रणे सत् छे. द्रव्य–गुणनो लाभ पर्यायमां आवे त्यारे द्रव्यनी साची श्रद्धा कहेवाय.
आवी श्रद्धा ते मोक्षनुं बीज छे. निर्मळ पर्यायपूर्वक ज द्रव्य प्रतीतमां आवे छे. एकली
मलिनतामां एवी ताकात नथी के शुद्ध द्रव्यस्वभावने झीली शके. स्वसन्मुख थयेली
निर्मळ पर्यायमां ज ए ताकात छे. द्रव्यसन्मुख थईने तेने प्रतीतमां लेतां ज पर्याय
निर्मळ थई जाय छे.
शुद्धद्रव्य प्रतीतमां ल्ये ने पर्यायमां तेनी प्रसिद्धि (परिणमन) न थाय एम बने नहीं.
निर्मळ पर्याय वगर द्रव्यने प्रतीतमां लीधुं कोणे? निर्मळपर्याय वगरनुं एकलुं द्रव्य
प्रतीतमां आवतुं नथी. स्वसन्मुख थईने शुद्धआत्मानी प्रतीत करतां निर्मळ पर्यायपणे
प्रसिद्ध थाय छे.
अंतरपरिणतिनी ओळखाण बाहरनी द्रष्टिवडे थती नथी, एकली
गृहवासमां वसता छतां तारी आत्मस्पर्शी परिणति गृहथी अलिप्त छे.
बहारना संयोगमां कदाच असाताजन्य दुःख देखाय पण तारी
अंतरपरिणति तो चैतन्यना सुखरसने गटगटावी रही छे. तारी
परिणतिमां विकारथी जुदी ज एक उपशांत–ज्ञानधारा सदाय वर्ती रही
छे,–जेना बळे तुं संयोगथी ने विभावोथी सदाय अलिप्त रहे छे. वाह रे
वाह, संत! तारी अंतरनी ए धाराने ओळखातां मारो आत्मा पण
जाणे सर्वे परभावोथी जुदो पडी जाय छे...ने आनंदनी मधुर उर्मिओ