: आसो : २४९३ आत्मधर्म : ११ :
(१) समजवा टाणे पर्यायमां अशुद्धता होय छतां स्वभाव शुद्ध छे, ते शुद्धस्वभावनो
आश्रय करे तो समजाय.
(र) उपादाननी समजवानी तैयारी वखते निमित्त होय छे, पण समजनार पोते छे.–
एम जाणीने, निमित्तनुं लक्ष छोडीने उपादान तरफ वळे तो यथार्थ समजाय.
(३) सत् समजवानी पात्रता वखते शुभरागरूप व्यवहार होय, पण ते व्यवहारना
आश्रये कल्याण नथी. ते व्यवहारनो आश्रय छोडीने, परमार्थ–स्वभावनो
आश्रय करे तो सत् समजाय.
–ए प्रमाणे बब्बे पडखां जाणीने एक स्वभाव तरफ वळे त्यारे अनेकांत थाय
छे; बंनेने पकडी राखे तो अनेकांत थतुं नथी. अज्ञानीओ अनेकांतना नामे झघडा करे
छे. पण अहीं ‘सम्यक् एकांत एवा निजपदनी प्राप्ति सिवाय अन्य कोई हेतुए
अनेकांतमार्ग उपकारी नथी’ एम कहीने ते बधा झघडानो निकाल करी नांख्यो छे.
(१) जीव समजे त्यारे अशुद्धता होवा छतां तेना आश्रये कल्याण थतुं नथी, पण
शुद्धस्वभावना आश्रये ज कल्याण थाय छे.
(र) जीव समजे त्यारे शुभराग–व्यवहार होवा छतां तेना आश्रये कल्याण थतुं नथी
पण रागरहित निश्चयस्वभावना आश्रये ज कल्याण थाय छे.
सर्वज्ञ भगवाने केवळज्ञानद्वारा जगतना पदार्थोने जेम छे तेम जाणीने, वस्तुना
अनेक धर्मोनुं वर्णन कर्युं छे.
(१) त्रिकाळी शुद्ध ने वर्तमान अशुद्धता.
(र) उपादान पोतानी ताकातथी समजे अने ते वखते पर निमित्त होय पण
ते कांई करे नहि.
(३) समजवा टाणे साचा देव–गुरु–शास्त्रनी श्रद्धा वगेरे शुभरागरूप
व्यवहार होय, पण धर्म तो निश्चयभावना आश्रये ज थाय छे.
–ए प्रमाणे बब्बे पडखां होवा छतां, अशुद्धता–निमित्त के राग हुं नहि, शुद्ध
उपादान–निश्चयस्वभाव ते हुं–एवी श्रद्धा करीने स्वाश्रयभाव प्रगट करवो ते धर्म छे.
अनेकांतिक मार्ग होवा छतां सम्यक् एकांत एवा निजपदनी प्राप्ति माटे ज ते उपकारी छे.
बब्बे बोल होवा छतां, तेने जाणीने एक शुद्ध–निश्चय तरफ वळे तेनुं नाम सम्यक् एकांत छे.
शुद्धता अने अशुद्धता बंने होवा छतां जो शुद्धस्वभाव उपर द्रष्टि नहि करे तो
अशुद्धताने जाणशे कोण? उपादान अने निमित्त बंने होवा छतां, उपादान तरफ वळ्या
वगर निमित्तनु यथार्थ ज्ञान करशे कोण? शुद्धस्वभाव अने राग, अथवा निश्चय अने
व्यवहार बंने होवा छतां, निश्चयस्वभाव तरफ द्रष्टि कर्या वगर व्यवहारने व्यवहार
कहेशे कोण? निर्मळ स्वभाव तरफना वलण