Atmadharma magazine - Ank 288
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 15 of 45

background image
: १२ : आत्मधर्म : आसो : २४९३
वगर स्व–परने जाणवानो विवेक उघडशे नहीं. अभेद स्वभाव तरफ ढळवुं ते ज
अनेकांतनुं प्रयोजन छे. अभेद स्वभाव तरफ ढळवुं एम कहो के ‘सम्यक् एकांत’ कहो,
तेमां मोक्षमार्ग आवी जाय छे.
अहीं
‘सम्यक् एकांत’ कहीने निमित्त, राग अने व्यवहारने उडाडी दीधा छे
अर्थात् ते होवा छतां तेना आश्रये कल्याण नथी पण निजस्वभावना आश्रये ज
कल्याण छे एम समजाव्युं छे. दया, दान के व्रत वगेरे शुभराग ते दुःख छे–आकुळता छे.
अने हिंसा, विषय–कषाय वगेरे अशुभ लागणीओ तीव्र दुःख छे–आकुळता छे. ते
शुभ–अशुभ लागणीओ आत्मानी अवस्थामां थाय छे खरी, पण ते त्रिकाळी स्वरूप
नथी. अवस्थामां पुण्य–पाप ने अज्ञान छे, तेनी जो ना पाडे तो समजवानो प्र्रयत्न
करवानुं रहे नहि; अने त्रिकाळी स्वभावमां ते पुण्य–पाप के अज्ञान नथी–एम जो न
समजे तो त्रिकाळी स्वभावना आश्रय वगर पुण्य–पाप वगेरे टळे नहीं. व्यवहार,
निमित्त ने राग छे तेनी ज्ञानीओ ना नथी पाडता, पण तेना वडे धर्म थशे, के ते करतां
करतां धर्म थशे–एम मानवानी ना पाडे छे.
जीवोए आ वात कदी रुचिपूर्वक सांभळी नथी. संसारमां जीवे अनंत
मनुष्यभव कर्या अने सत् संभळावनार ज्ञानी अनंतवार मळ्‌या, साक्षात् सर्वज्ञ
परमात्मानी सभामां जईने दिव्यध्वनि सांभळ्‌यो पण अंतरमां निजपदने पामवानी
लायकात पोते प्रगट करी नथी. निजपदने भूलीने परपदमां ज अटकी गयो छे. कां तो
आत्माने एकांत शुद्ध ज मान्यो, कां सर्वथा अशुद्ध मानी लीधो, कां निमित्तथी कल्याण
थशे एम मान्युं, कां व्यवहारना आश्रयथी लाभ मानीने रागमां ज अटक्यो. पण राग
अने निमित्त वगरना निजस्वभाव तरफ कदी वलण कर्युं नहि. स्वभाव तरफ ढळतो
निश्चय छे; पर तरफ ढळतो व्यवहार छे. वस्तुनो स्वभाव ते उपादान छे अने पर
संयोग ते निमित्त छे.
(१) अवस्थामां अशुद्धता होवा छतां आत्मा स्वभावथी शुद्ध छे.
(र) पर निमित्त होवा छतां आत्मा स्वसंवेद्य छे.
(३) राग–व्यवहार होवा छतां निश्चयना अवलंबने धर्म छे. माटे हे भाई!
तुं शुद्धस्वभावसन्मुख थईने तेनुं ज्ञान कर तो तारुं ज्ञान अशुद्धताने यथार्थ
जाणशे.
स्व–उपादाननी द्रष्टि कर तो पर निमित्तने जोवानी आंख उघडशे.
स्वभावसन्मुख थईने निश्चय प्रगट कर तो विभावने–व्यवहारने जाणवानी
ताकात खीलशे. अने–