Atmadharma magazine - Ank 288
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : २४९३ आत्मधर्म : १प :
छे छे ने छे, त्रिकाळ छे. ते वस्तु कांई नवी प्राप्त थती नथी; परंतु तेनुं भान थईने
सम्यग्दर्शन– ज्ञान–चारित्रवडे पूर्ण परमात्मपद प्रगटे तेनुं नाम निजपदनी प्राप्ति छे.
‘मूळमार्ग’ मां कहे छे के–
ते त्रणे अभेद परिणामथी रे, ज्यारे वर्ते ते आत्मारूप...मूळ
तेह मारग जिननो पामीयो रे, किंवा पाम्यो ते निजस्वरूप...मूळ
ज्यारे सम्यग्दर्शन–सम्यग्ज्ञान ने सम्यक्चारित्र ए त्रणे अभेदपरिणामे
आत्मारूप वर्ते त्यारे ते जीव जिननो मार्ग पाम्यो एटले के निजस्वरूपने पाम्यो.
जिननो मार्ग कहो के निजस्वरूप कहो–ते कांई जुदा नथी. लोको बहारमां जिननो मार्ग
मानी बेठा छे, पण जिननो मारग बहारमां नथी, पोतानुं आत्मस्वरूप जे भावथी
पमाय ते ज जिननो मार्ग छे.
१– अवस्थामां अशुद्धता होवा छतां शुद्ध उपर द्रष्टि,
२– पर निमित्त होवा छतां स्वद्रव्यनो आश्रय,
३– व्यवहार होवा छतां निश्चयनुं अवलंबन,
४– क्षणिक पर्यायना भेदो होवा छतां अभेद द्रव्य उपर द्रष्टि, अथवा पर्यायोनी
अनेकता होवा छतां स्वभावनी एकतानो आश्रय,
–आवो निजपदनी प्राप्तिरूप सम्यक् एकांत छे अने एनी प्राप्ति कराववी ते ज
अनेकांतनुं प्रयोजन छे. निश्चयना अवलंबनथी धर्म थाय ने व्यवहारना अवलंबनथी
पण धर्म थाय–एनुं नाम अनेकांत नथी, ते तो मिथ्या एकांत छे. निश्चयना आश्रये
धर्म थाय ने व्यवहारना आश्रये धर्म न थाय–एवो अनेकांत छे, अने ते जाणीने
निश्चय तरफ ढळवुं तेनुं नाम सम्यक् एकांत छे. मोक्षमार्गमां वच्चे क््यांय व्यवहारनुं
अवलंबन छे ज नहीं. वच्चे व्यवहार होवा छतां तेना अवलंबने धर्म टकतो नथी,
मोक्षमार्ग तो निश्चयना अवलंबने ज टक्यो छे.
भाई, शास्त्रोमां निश्चयना तेम ज व्यवहारना, उपादानना तेम ज निमित्तना,
द्रव्यना तेम ज पर्यायना, अभेदना तेम ज भेदना तथा शुद्धना तेम ज अशुद्धना कथनो
भले हो, पण सम्यक् एकांत एवा निजपदनी प्राप्ति ए ज सर्वनो सार छे. ए बधुं जाणीने
जो स्वभाव तरफ न वळे तो जीवने सम्यग्दर्शन प्रगटे नहि ने कल्याण थाय नहि. जो
स्वभावनी रुचि न करे अने भेदनी व्यवहारनी–निमित्तनी के पर्यायनी रुचि करे तो
मिथ्या एकांत थई जाय छे. शास्त्रना लक्षे अनेक पडखां जाणीने जो स्वभाव तरफनुं वलण
न करे तो जीवने शुं लाभ? निजपदनी प्राप्ति न करे ते ज्ञानने अनेकान्त कहेवाय नहीं.
हुं ज्ञाता द्रष्टा त्रिकाळ छुं, पूर्णानंद प्रगट