सम्यग्दर्शन– ज्ञान–चारित्रवडे पूर्ण परमात्मपद प्रगटे तेनुं नाम निजपदनी प्राप्ति छे.
‘मूळमार्ग’ मां कहे छे के–
जिननो मार्ग कहो के निजस्वरूप कहो–ते कांई जुदा नथी. लोको बहारमां जिननो मार्ग
मानी बेठा छे, पण जिननो मारग बहारमां नथी, पोतानुं आत्मस्वरूप जे भावथी
पमाय ते ज जिननो मार्ग छे.
पण धर्म थाय–एनुं नाम अनेकांत नथी, ते तो मिथ्या एकांत छे. निश्चयना आश्रये
धर्म थाय ने व्यवहारना आश्रये धर्म न थाय–एवो अनेकांत छे, अने ते जाणीने
निश्चय तरफ ढळवुं तेनुं नाम सम्यक् एकांत छे. मोक्षमार्गमां वच्चे क््यांय व्यवहारनुं
अवलंबन छे ज नहीं. वच्चे व्यवहार होवा छतां तेना अवलंबने धर्म टकतो नथी,
मोक्षमार्ग तो निश्चयना अवलंबने ज टक्यो छे.
भले हो, पण सम्यक् एकांत एवा निजपदनी प्राप्ति ए ज सर्वनो सार छे. ए बधुं जाणीने
जो स्वभाव तरफ न वळे तो जीवने सम्यग्दर्शन प्रगटे नहि ने कल्याण थाय नहि. जो
स्वभावनी रुचि न करे अने भेदनी व्यवहारनी–निमित्तनी के पर्यायनी रुचि करे तो
मिथ्या एकांत थई जाय छे. शास्त्रना लक्षे अनेक पडखां जाणीने जो स्वभाव तरफनुं वलण
न करे तो जीवने शुं लाभ? निजपदनी प्राप्ति न करे ते ज्ञानने अनेकान्त कहेवाय नहीं.