Atmadharma magazine - Ank 288
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: १६ : आत्मधर्म : आसो : २४९३
करवानी ताकात मारामां भरी छे, ज्ञानदर्शननी वीतरागी क्रियानो ज हुं कर्ता छुं, जडनी
क्रियानो हुं कर्ता नथी तेम ज पुण्य–पाप पण मारी स्वाभाविक क्रिया नथी. कोई पर मने
रखडावतुं नथी अने कोई पर मने समजाववानी ताकातवाळुं नथी. हुं मारी भूले
रखड्यो छुं; ने मारा पुरुषार्थे साची समजण करीने मुक्ति पामुं छुं. अनंत सर्वज्ञो–संतो
पूर्वे थई गया, पण हुं मारी पात्रताना अभावे न समज्यो. मारा निजपदनी प्राप्ति
स्वसन्मुख पुरुषार्थथी थाय छे. वर्तमानमां हुं मारा पूर्णानंदमय स्वपदनी प्राप्ति करवा
मांगुं छुं तो तेवो पूर्णानंद प्रगट करनारा अनंत जीवो पूर्वे थई गया छे, अत्यारे विचरे
छे अने भविष्यमां पण अनंत थशे. सर्वज्ञता वगर पूर्णानंद न होय. सर्वज्ञता प्रगट
करीने पूर्णानंद पामनारा जीवो सम्यक् एकांत एवा निजपदनो ज आश्रय लईने
पाम्या छे–पामे छे ने पामशे; ए सिवाय राग–निमित्त के व्यवहार–ए बधा परपद छे–
तेना आश्रये कोई निजपदने पाम्या नथी–पामता नथी ने पामशे नहीं. त्रणेकाळे आ
एक ज भवना अंतनो ने मुक्तिनी प्राप्तिनो उपाय छे.
श्रीमद्ना वचनोमां ज्यां होय त्यां भवना अंतनो पडकार छे; तेओ लखे छे के:–
‘कायानी विसारी माया, स्वरूपे शमाया एवा–
निग्रंथनो पंथ भव–अंतनो उपाय छे.’
स्वसन्मुख थईने स्वभावनी श्रद्धा–ज्ञान प्रगट करीने तेमां लीनता करवी ते ज
भवना अंतनो उपाय छे. भवना अंतनो पंथ क्यांथी शरू थाय?–शुं भवना कारणनो
आश्रय लेवाथी भवना अंतनी शरूआत थाय?–के भवरहित स्वरूपनो आश्रय लेवाथी
भवना अंतनी शरूआत थाय? धर्म माटे आत्माना स्वभाव सिवाय परनो आश्रय
स्वीकारवो ते बंधनो पंथ छे. आत्मसिद्धिमां कह्युं छे के–
जे जे कारण बंधना तेह बंधनो पंथ;
ते कारण छेदकदशा मोक्षपंथ, भव अंत.
शुभाशुभभावनी रुचि ने पर्यायबुद्धि ते बंधननो एटले के संसारनो पंथ छे.
अने तेनो छेद ते भवना अंतनो एटले के मोक्षनो पंथ छे. पण तेनो छेद कई रीते
थाय? ‘आ शुभाशुभनो छेद करुं’ एम तेनी सामे जोया करवाथी (अर्थात्
पर्यायबुद्धिथी) तेनो छेद थाय नहि, पण आत्माना शुद्ध चैतन्यस्वभावनी रुचि करीने
तेमां एकाग्र थतां पर्यायबुद्धिनो अने रागनो छेद थई जाय छे–अर्थात् तेनी उत्पत्ति ज
थती नथी. एटले शुद्ध चैतन्यस्वभावनी रुचि करीने तेमां एकाग्रता करवी ते ज
मोक्षनो ने भवना अंतनो पंथ छे.
शास्त्रोमां निश्चय तेम ज व्यवहार बंनेनी वात छे, पण मोक्षने माटे आश्रय तो एक