क्रियानो हुं कर्ता नथी तेम ज पुण्य–पाप पण मारी स्वाभाविक क्रिया नथी. कोई पर मने
रखडावतुं नथी अने कोई पर मने समजाववानी ताकातवाळुं नथी. हुं मारी भूले
रखड्यो छुं; ने मारा पुरुषार्थे साची समजण करीने मुक्ति पामुं छुं. अनंत सर्वज्ञो–संतो
स्वसन्मुख पुरुषार्थथी थाय छे. वर्तमानमां हुं मारा पूर्णानंदमय स्वपदनी प्राप्ति करवा
मांगुं छुं तो तेवो पूर्णानंद प्रगट करनारा अनंत जीवो पूर्वे थई गया छे, अत्यारे विचरे
छे अने भविष्यमां पण अनंत थशे. सर्वज्ञता वगर पूर्णानंद न होय. सर्वज्ञता प्रगट
करीने पूर्णानंद पामनारा जीवो सम्यक् एकांत एवा निजपदनो ज आश्रय लईने
पाम्या छे–पामे छे ने पामशे; ए सिवाय राग–निमित्त के व्यवहार–ए बधा परपद छे–
तेना आश्रये कोई निजपदने पाम्या नथी–पामता नथी ने पामशे नहीं. त्रणेकाळे आ
एक ज भवना अंतनो ने मुक्तिनी प्राप्तिनो उपाय छे.
श्रीमद्ना वचनोमां ज्यां होय त्यां भवना अंतनो पडकार छे; तेओ लखे छे के:–
आश्रय लेवाथी भवना अंतनी शरूआत थाय?–के भवरहित स्वरूपनो आश्रय लेवाथी
भवना अंतनी शरूआत थाय? धर्म माटे आत्माना स्वभाव सिवाय परनो आश्रय
स्वीकारवो ते बंधनो पंथ छे. आत्मसिद्धिमां कह्युं छे के–
ते कारण छेदकदशा मोक्षपंथ, भव अंत.
थाय? ‘आ शुभाशुभनो छेद करुं’ एम तेनी सामे जोया करवाथी (अर्थात्
पर्यायबुद्धिथी) तेनो छेद थाय नहि, पण आत्माना शुद्ध चैतन्यस्वभावनी रुचि करीने
तेमां एकाग्र थतां पर्यायबुद्धिनो अने रागनो छेद थई जाय छे–अर्थात् तेनी उत्पत्ति ज
थती नथी. एटले शुद्ध चैतन्यस्वभावनी रुचि करीने तेमां एकाग्रता करवी ते ज
मोक्षनो ने भवना अंतनो पंथ छे.