: आसो : २४९३ आत्मधर्म : २प :
स्वपर–प्रकाशक एवी चैतन्यसत्तानो प्रत्यक्ष गुण जेने विषे छे एवो आत्मा
होवानुं प्रमाण छे. (वर्ष २६, ४९३)
प१. जे सत्पुरुषोए जन्म–जरा–मरणनो नाश करवावाळो, स्व–स्वरूपमां सहज
अवस्थान थवानो उपदेश कह्यो छे ते सत्पुरुषोने अत्यंत भक्तिथी नमस्कार छे. (वर्ष
२७, ४९३)
प२. जो जीवमां असंगदशा आवे तो आत्मस्वरूप समजवुं साव सुलभ छे अने
ते असंग दशानो हेतु वैराग्य अने उपशम छे. (वर्ष २७, प००)
प३. जेम बने तेम जीवना पोताना दोष प्रत्ये लक्ष करी बीजा जीव प्रत्ये निर्दोष
द्रष्टि राखी वर्तवुं अने वैराग्य उपशमनुं जेम आराधन थाय तेम करवुं ए प्रथम
स्मरणवा योग्य वात छे. (वर्ष २७, प००)
प४. वीतरागनो कहेलो परम शांत रसमय धर्म पूर्ण सत्य छे एवो निश्चय
राखवो. जीवना अनअधिकारीपणाने लीधे तथा सत्पुरुषना योग विना समजातुं नथी,
तोपण तेना जेवुं जीवने संसाररोग मटाडवाने बीजुं कोई पूर्ण हितकारी औषध नथी
एवुं वारंवार चिंतवन करवुं. (वर्ष २७, प०प)
पप. आ परम तत्त्व छे, तेनो मने सदाय निश्चय रहो. ए यथार्थ स्वरूप मारा
हृदयने विषे प्रकाश करो अने जन्ममरणादि बंधनथी अत्यंत निवृत्ति थाओ! निवृत्ति
थाओ! (वर्ष २७, प०प)
प६. हे जीव! आ कलेशरूप संसारथकी विराम पाम विराम पाम. कांईक विचार,
प्रमाद छोडी जागृत था! जागृत था! नहीं तो रत्नचिंतामणि जेवो आ मनुष्यदेह
निष्फळ जशे. (वर्ष २७, प०प)
प७. हे जीव! हवे तारे सत्पुरुषनी आज्ञा निश्चय उपासवा योग्य छे. (वर्ष २७,
प०प)
प८. ज्ञानी पुरुषोनी आज्ञानुं आराधन ए सिद्धपदनो सर्वश्रेष्ठ उपाय छे. (वर्ष
२७, प११)
प९. वैराग्य उपशमनुं बळ वधे ते प्रकारनो सत्संग, सत्शास्त्रोनो परिचय
करवो ए जीवने परम हितकारी छे; बीजो परिचय जेम बने तेम निवर्तन योग्य छे.
(वर्ष २७, प१२)
६०. आत्महितने माटे सत्संग जेवुं बळवान बीजुं निमित्त कोई जणातुं नथी.
(वर्ष २७)
६१. पोताने विषे उत्पन्न थयो होय एवो महिमायोग्य गुण तेथी उत्कर्ष पामवुं
घटतुं नथी पण अल्प पण निजदोष