: २६ : आत्मधर्म : आसो : २४९३
जोईने फरी फरी पश्चात्तापमां पडवुं घटे छे. (वर्ष २७, प२प)
६२. राजा हो के रंक हो गमे ते हो, परंतु आ विचार विचारी सदाचार भणी
आवजो के आ कायानां पुद्गल थोडा वखतने माटे साडात्रण हाथ भूमि मांगनार छे.
६३. जिंदगी टूंकी छे, जंजाळ लांबी छे माटे जंजाळ टूंकी करतां सुखरूपे जिंदगी
लांबी लागशे.
६४. जेने घरे आ दिवस कलेश वगरनो, स्वच्छताथी, शौचताथी, संपथी
संतोषथी, सौम्यताथी, स्नेहथी, सभ्यताथी, सुखथी जशे तेने घेर पवित्रतानो वास छे.
६प. जहां कल्पना जल्पना, तहां मानुं दुःख छांई;
मिटे कल्पना जल्पना, तब वस्तु तिन पाई; (७६प)
६६. चैतन्यनो निरंतर अविच्छिन्न अनुभव प्रिय छे, ए ज जोईए छीए,
बीजी कांई स्पृहा रहेती नथी, रहेती होय तोपण राखवा ईच्छा नथी. ‘तुं ही तुं ही’ ए
ज यथार्थ वहेती प्रवाहना जोईए छे. (वर्ष २३, १४४)
६७. तमे अमे कोई दुःखी नथी. जे दुःख छे ते रामना चौद वर्षनो एक दिवस
पण नथी, पांडवना तेर वर्षना दुःखनी एक घडी नथी अने गजसुकुमारना ध्याननी
एक पळ नथी. (वर्ष २६, ४प०)
६८. निजने विषे निजबुद्धि थाय तो परिभ्रमण दशा टळे छे. जेना चित्तमां
एवो मार्ग विचारवानो अवश्यनो छे तेणे ते ज्ञान जेना आत्मामां प्रकाश पाम्युं छे
तेनी दासानुदासपणे अनन्य भक्ति करवी ए परम श्रेय छे. (प३६)
६९. कषायनी उपशांतता, मात्र मोक्षअभिलाष,
भवे खेद अंतर दया, त्यां आत्मार्थ निवास.
७०. ज्ञानी पुरुषोनां वचननो द्रढ आश्रय जेने थाय तेने सर्व साधन सुलभ
थाय एवो अखंड निश्चय सत्पुरुषोए कर्यो छे. (प६०)
७१. विषम संसारबंधन छेदीने चाली नीकळ्या ते पुरुषोने अनंत
प्रणाम.(प६८)
७२. सर्वपदार्थनुं स्वरूप जाणवानो हेतु मात्र आत्मज्ञान करवुं ए छे; जो
आत्मज्ञान न थाय तो सर्वपदार्थनुं सर्व पदार्थना ज्ञाननुं निष्फळपणुं छे. (प६९)
७३. सर्व कलेशथी अने सर्वदुःखथी मुक्त थवानो उपाय एक आत्मज्ञान छे.
(प६९)