Atmadharma magazine - Ank 289
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: कारतक : २४९४ आत्मधर्म : ११ :
वर्ते छे. आ रीते ज्यां रुचि त्यां श्रद्धा, अने ज्यां श्रद्धा त्यां एकाग्रता थाय छे.
पहेलांं आत्मामां हितबुद्धि एवी थवी जोईए के अहो! आ जगतमां क््यांय मारुं सुख
होय तो ते मारा आत्मामां ज छे, मारा आत्माथी बहार जगतना कोई पण विषयोमां मारुं
सुख छे ज नहि. –आवो द्रढ निर्णय करे तो आत्मामां हितबुद्धि थतां तेनी रुचि थाय, ने तेनी
श्रद्धा थतां वारंवार तेमां ज वलण रह्या करे, ने तेमां ज लीनता थाय. जेने आत्मानी रुचि छे
तेने बीजा विषयोमां सुखबुद्धि स्वप्नेय थती नथी. शुद्ध चिदानंद आत्मामां ज सुखबुद्धिथी
स्वप्नेय तेनुं ज रटण रह्या करे छे. हुं चिदानंद छुं, हुं ज्ञायक छुं–एवी प्रतीतिनुं परिणमन धर्मीने
सदाय वर्ते छे. अने अज्ञानीने देह ते हुं–राग ते हुं एवी ऊंधी प्रतीतिनुं परिणमन सदाय वर्ते
छे. जीवने जे विषयनी रुचि–श्रद्धा अने लीनता होय तेनुं ज रटण रह्या करे छे.
धर्मीने स्वप्नां पण एवा आवे के हुं चरमशरीरी छुं, हुं भगवाननी सभामां बेठो छुं,
मुनिओ मने आशीर्वाद आपे छे. –आ रीते रुचि अने श्रद्धानुं जोर जीवने ते–ते विषयथी हटवा
देतुं नथी, तेने तेनुं रटण रह्या ज करे छे. वज्रपात थाय के देव डगाववा आवे तोपण धर्मीनी
श्रद्धामांथी आत्मानुं रटण खसतुं नथी...हुं ज्ञानानंद स्वरूप छुं–एवी श्रद्धानुं रटण तेने निरंतर
वर्त्या ज करे छे. आ रीते जेमां हितबुद्धि होय तेमां श्रद्धा ने लीनता थाय छे, उपयोग वारंवार ते
तरफ जाय छे.
।। ९प।।
हवे जेमां हितबुद्धि न होय तेमां जीवने श्रद्धा के लीनता थता नथी, एटले तेमां ते
अनासक्त ज होय छे–एम कहेशे.
दश सवाल ने दश जवाब
१. देव कोण? ....................... जिनेन्द्रदेव.
२. गुरु कोण? ....... रत्नत्रयधारी निर्ग्रंथ मुनि.
३. धर्म कोण? .......... मोहरहित शुद्धपरिणाम.
४. पूजा कोनी करवी? ............ जिनेन्द्रदेवनी,
प. उत्तमरत्न क््या?....सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र,
६. स्नेह कोनो करवो? ... धर्मात्मानो.
७. जीवनो साचो मित्र कोण? ..... सम्यग्दर्शन.
८. जीवनो मोटो शत्रु कोण? ....... मिथ्यात्व.
९. निजपद कयुं? ..... शुद्धचैतन्यस्वरूप.
१०. जगतमां उत्तम कोण? ..... शुद्धआत्मा.
(बे वखत वांचीने दशे जवाब मोढे रही जाय तो तमे १०० मार्के पास)