पहेलांं आत्मामां हितबुद्धि एवी थवी जोईए के अहो! आ जगतमां क््यांय मारुं सुख
सुख छे ज नहि. –आवो द्रढ निर्णय करे तो आत्मामां हितबुद्धि थतां तेनी रुचि थाय, ने तेनी
तेने बीजा विषयोमां सुखबुद्धि स्वप्नेय थती नथी. शुद्ध चिदानंद आत्मामां ज सुखबुद्धिथी
स्वप्नेय तेनुं ज रटण रह्या करे छे. हुं चिदानंद छुं, हुं ज्ञायक छुं–एवी प्रतीतिनुं परिणमन धर्मीने
सदाय वर्ते छे. अने अज्ञानीने देह ते हुं–राग ते हुं एवी ऊंधी प्रतीतिनुं परिणमन सदाय वर्ते
छे. जीवने जे विषयनी रुचि–श्रद्धा अने लीनता होय तेनुं ज रटण रह्या करे छे.
देतुं नथी, तेने तेनुं रटण रह्या ज करे छे. वज्रपात थाय के देव डगाववा आवे तोपण धर्मीनी
श्रद्धामांथी आत्मानुं रटण खसतुं नथी...हुं ज्ञानानंद स्वरूप छुं–एवी श्रद्धानुं रटण तेने निरंतर
तरफ जाय छे.
२. गुरु कोण? ....... रत्नत्रयधारी निर्ग्रंथ मुनि.
३. धर्म कोण? .......... मोहरहित शुद्धपरिणाम.
४. पूजा कोनी करवी? ............ जिनेन्द्रदेवनी,
प. उत्तमरत्न क््या?....सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र,
७. जीवनो साचो मित्र कोण? ..... सम्यग्दर्शन.
८. जीवनो मोटो शत्रु कोण? ....... मिथ्यात्व.
९. निजपद कयुं? ..... शुद्धचैतन्यस्वरूप.
१०. जगतमां उत्तम कोण? ..... शुद्धआत्मा.