: १२ : आत्मधर्म : कारतक : २४९४
जैनसिद्धांत–अहिंसा परमो धर्मः
१. –अहिंसा कोने कहे छे?
आत्मामां रागादि भावोनी उत्पत्ति न थवी ते अहिंसा छे.
२. –हिंसा कोने कहे छे?
आत्मामां रागादि भावोनी उत्पत्ति थवी ते हिंसा छे; तेना वडे आत्माना शुद्धोपयोगरूप
भावप्राण हणाय छे.
३. –जे भाव वडे शुद्धोपयोग हणाय ते हिंसा छे;
जे भाव वडे शुद्धोपयोग अखंड रहे ते अहिंसा छे;
अने आवी अहिंसा ते परमो धर्मः छे, ए जैनसिद्धांत छे.
४. –अहो, वीतरागमार्गनी अहिंसा! शुद्धतारूप पोताना भावप्राणनी जेमां रक्षा थाय ते
वीतरागी अहिंसा छे. एनाथी विरुद्ध एवा कषायभावो (राग–द्वेष) वडे हिंसा थाय छे,
हिंस्य अने हिंसक बंने पोतामां ज छे, ने तेनो अभाव करीने वीतरागभावरूप अहिंसा
पण पोताना आत्माना आश्रये प्रगटे छे.
प. –चैतन्यप्राण शुं छे तेनी जेने खबर ज नथी ते तेनी रक्षा कई रीते करशे? ने तेने
अहिंसा क््यांथी होय? पोताना भावप्राण जेना वडे हणाई रह्या छे एवा रागादि
भावोने जे सेवी रह्यो छे ते हिंसाने ज सेवी रह्यो छे; अहिंसाना स्वरूपनी तेने खबर
नथी, अहिंसारूप धर्म तेने होतो नथी.
६. –जेनी अहिंसा करवानी छे एवा शुद्धजीवनुं स्वरूप जे जाणतो नथी, ने जे भाववडे हिंसा
थाय छे ते भावने हिंसा तरीके जे ओळखतो नथी–तेने अहिंसा होती नथी ने हिंसानो
त्याग यथार्थपणे होतो नथी. बहारथी द्रव्यप्राणनी हिंसा भले तेना वडे न थती होय पण
अंदर अशुद्ध भावोना सेवन वडे तेने भावहिंसा तो क्षणेक्षणे थई ज रही छे.
७. –मिथ्यात्व होय त्यां चैतन्यना भावप्राणनी रक्षा थई शक्ती नथी, मिथ्यात्व वडे
चैतन्यप्राण हणाय छे; तेथी ज्यां मिथ्यात्व होय त्यां साची अहिंसा होती नथी.
वस्तुस्वरूपना ज्ञान वडे ज अहिंसाधर्मनुं पालन थई शके छे.